डॉक्टर मीना श्रीवास्तव

☆ आलेख ☆ “रामनवमी – एक आत्मीय पत्र…” ☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆

प्रिय पाठकगण,

आप सबको मेरा सादर प्रणिपात!

रामनवमी के इस मंगलमय पर्व के अवसर पर आप सबको अनेकानेक शुभकामनाएं!

‘चैत्र मास त्यात शुद्ध नवमी तिथी, गंधयुक्त तरीही वात उष्ण हे किती,

दोन प्रहरी कां ग शिरी सूर्य थांबला, राम जन्मला ग सखी राम जन्मला’

(अर्थात, चैत्र महीने की नवमी तिथी है, सुगन्धित परन्तु गर्म हवा बह रही है, ऐसे में दूसरे प्रहर को सूर्य माथेपर आकर क्यों रुका है? क्योंकि राम का जन्म हुआ है!)

प्रतिभासम्पन्न कवि ग दि माडगूळकर द्वारा रचे हुए और महान संगीतकार और गायक सुधीर फडके द्वारा गाये हुए ‘गीतरामायण’ के इस इस चिरंतन रामजन्म के गीत का एक एक शब्द चैत्र महीने के नवोल्लास को लेकर प्रकट हुआ है ऐसा लगता है| गुड़ीपाडवा को नववर्ष का जन्म हुआ, तथा पृथ्वी को प्रतीक्षा थी रामजन्म की| नूतन वासंतिक पल्लवी का गुलाबी महीन वस्त्र पहनकर तथा अभी अभी अंकुरित पीतवर्ण सुगन्धित आम्रमंजरी के गजरोंसे सजकर वह तैयार हुई| धुप में खेलकर बालकों के अंग जिस तरह लाल होते हैं वैसे ही उष्ण समीर के झोंके आज जाकर सूर्य का प्रदीप्त साथ पाकर तप्त हुए हैं| उनके कानों तक एक सुन्दर वार्ता पहुंची और वे तत्काल निकल पडे मनू द्वारा निर्मित अयोध्या नगरी को|

मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में प्रथम पुरी (नगरी) यानि अयोध्या! सरयू नदी के किनारे पर बसी यह स्वर्ग से सुन्दर नगरी| अब यहाँ आनन्द की कोई सीमा नहीं है| सारे सुखों के आगार रही इस नगर में बस एक अभाव था, महाराज दशरथ पुत्रसुख से वंचित थे| परन्तु अब यह दुःख समाप्ति के मार्ग पर है| दशरथ की तीनों रानियां गर्भवती हैं और अब समय आ गया है उनकी अपत्य प्राप्ति का. यह उत्सुकता अब चरम सीमा पर पहुँच गयी है| प्रकृति भी इस उत्सुकता में शामिल हो गई है| पेडों पर कोमल कोंपल खिले हैं| बसंत ऋतु की बहार कोने कोने में दृष्टिगत हो रही है, तथा नदियोंका हृदय आनंद से अभिभूत हो रहा था| उनके पात्र प्रसन्नता से पूर्ण हो कर बह रहे थे| मर्यादापुरुषोत्तम का जन्म होगा, केवल इसी विचार से उन्होंने अपनी मर्यादा पार नहीं की थी| अयोध्या वासियोंके मानों पिछले सात जन्मों के पुण्य एकत्रित होने से उज्वल हो उठे थे| श्रीराम के मधुरतम बाल्यकाल का वे अनुभव करने वाले थे| राजमहल में भागदौड़ और गडबड देखते ही बनती थी| राजस्त्रियाँ, दास दासियाँ, दाइयां तो बस तीनों महलोंमें से यहाँ वहां दौड़ रही हैं| महाराज दशरथ, उनके परम मित्र महामंत्री सुमंत, मंत्रीगण, इनको तो चिंता ने व्याकुल कर दिया है| सूर्य माथेपर आने लगा है, तीनों रानियों की प्रसव वेदनाएं चरम सीमा पर पहुंची हैं|

अब यहाँ सबके साथ सूर्यदेव भी तनिक ठहर गए हैं, अयोध्या के माथेपर| ‘सूर्यवंश की नयी पीढी का जन्म होने में बस थोडा सा अवधि बाकी है, अब रुक ही जाऊँ क्षणके लिए|’ ऐसा सोचकर सूर्य आसमान के मध्य में थम गया है| ‘अब उसे कितनी देर तक प्रतीक्षा करवाऊं? ले ही लूँ जन्म इस ठीक मध्यान्ह समयपर, यहीं वह समय और यहीं वह घडी’ यह विचार करते हुए कौसल्या के बालक ने जन्म लिया। फिर कैकेयी के भरत को कैसे धीरज होगा? उसे भी पुत्र हुआ| सुमित्रा के गोद में तो जुड़वाँ बालक थे, एक को राम के सेवा में तो दूसरे को भरत की सेवा में उपस्थित होना था| दो बडे भैया तो पहले ही जगत में आ चुके थे| सो अब समय गँवाना ठीक नहीं था| सुमित्रा के दोनों बालकों ने भी जन्म लिया| इन बालकों के जन्म के अवसर पर ग्रह और नक्षत्र मानों आप ही अत्युच्च स्थान पर विराजमान हो गए थे| इक्ष्वाकुकुलभूषण श्रीराम का वर्ण नीलकमल के समान था, उसके नेत्रकमल किंचित आरक्तवर्णी थे, हाथ थे ‘आजानुबाहू’ और स्वर दुन्दुभिसमान था|

दिन ब दिन बालक बडे हो रहे थे| राजा दशरथ, उसकी तीनों रानियाँ, दास दासियाँ और अयोध्या के जन, ये समस्त लोग रामलला के लाड प्यार करने में मगन हैं| इस सांवले सलोने बालक ने पहला कदम रखा, तो उसे देखने का दैवी परमानंद जिसने अनुभव किया, उसे स्वर्गसुख की प्राप्ति हुई, यहीं समझ लें| इस दृश्य का वर्णन करते हुए चारों वेद मूक हो गए, सरस्वती को तनिक भी शब्द सूझ नहीं रहे थे, शेषनाग अपने सहस्त्र मुखों से यह वर्णन नहीं कर पाया, परन्तु, तुलसीदास तो हैं श्रीराम के परम भक्त, उन्होंने रामप्रभु के मनोरम शैशव का ऐसा रसमय वर्णन किया है कि, मानों हम दशरथ महाराज के राजमहल का दृश्य देख रहे हैं इतना पारदर्शी है मित्रों! यह वर्णन यानि शब्द तथा अर्थ का मधुशर्करा ऐसा मधुर योग! श्रीरामचंद्र के गिरते उठते शिशु चरण, उनके शरीर पर लगी धूल पोंछती रानियां, उनके पैंजनियों की झंकार और नासिका में हिलती डुलती लटकन! रामजी के इस शैशव रूप पर सब बलिहारी हैं|

“ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां,

किलकि-किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय,

धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियां |

अंचल रज अंग झारि, विविध भांति सो दुलारि,

तन मन धन वारि-वारि, कहत मृदु बचनियां |

विद्रुम से अरुण अधर, बोलत मुख मधुर-मधुर,

सुभग नासिका में चारु, लटकत लटकनियां |

तुलसीदास अति आनंद, देख के मुखारविंद,

रघुवर छबि के समान, रघुवर छबि बनियां |”

मित्रों, आइए, आज के परमपवित्र दिन रामजन्म का आनंद पूरी तरह मनाऐं! 

‘मंगल भवन अमंगल हारी, द्रबहु सु दसरथ अचर बिहारी

राम सिया राम सिया राम जय जय राम!’

पाठकों, अगली बार हमारी भेंट होगी परम पवित्र अयोध्या पुरी में!

डॉक्टर मीना श्रीवास्तव

दिनांक – ३० मार्च २०२३

फोन नंबर: ९९२०१६७२११

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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