सुश्री रुचिता तुषार नीमा

☆ कविता ☆ तुम वही बन जाओ…   ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

तुम जो भीतर हो वो बाहर भी हो जाओ…

क्यों इस भौतिक जगत में वही दिखाते हो, जो तुम हो ही नही…

क्या कभी मन नही करता कि कभी खुद को भी देखे?

 

हम क्यों वो बन जाते हैं, जो दूसरे देखना चाहते है?

हम वही क्यो नही दिखते, जो हम है…

 

आखिर कब तक?? हम ऐसे ही,

अपने को दुनिया के सामने प्रकट करने में डरेंगे,,

 

कब तक नकाबपोश बनकर, इस जीवन को जीएंगे,,

क्या इस तरह कभी भी जी पाओगे इस अमूल्य जीवन को!!!

क्या महसूस कर पाएंगे, वो परम आनंद की अनुभूति

 

नहीं!!! बस अब बहुत हुआ,

अब छोड़ दो, सब डर, सब छल,सब दिखावा,

तोड़ के सब झूठ के बंधन, जियो इस तरह जिस तरह तुम हो….

 

हा, तुम वही बन जाओ, जो तुम भीतर हो, फिर देखो

कितना आनंद ही आनंद है….इस जीवन मे,

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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