श्री सुरेश पटवा

☆ कविता ☆ विश्व हिंदी दिवस विशेष ☆ हिंदी-व्यथा ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

कल रात हिंदी मेरे सपने में आई,

सुनाने  अपनी  व्यथा चली आई।

 

ब्राह्मी पाली प्राकृत के साथ खेली,

मुझे गोद लिए संस्कृत चली आई।  

 

द्रविड़ भाईयों  को पर मैं नहीं भाई,

कहते हैं आर्य परिवार से तुम आई।

 

गुरमुखी  गुजराती  मराठी बंगाली,

कई  मुँहबोली  बहन निकल आई।

 

अवधि बृज बुंदेली मैथिल भोजपुरी,

सभी सहेलियाँ इठलाती चली आई।

 

देव नागरी उर्दू  अरबी फ़ारसी रोमन,

जिसमें चाहो लिखो हिंदी ही कहलाई।

 

मुझे कहते हो भारत माता की बिंदी,

भरी सभा में द्रोपदी सी घसीटी लाई। 

 

बनने वाली थी  मैं कौशल महारानी,

कैकई कृपा  से वनवास चली आई।

 

मैं खिल रही थी  हिंद की बाहों में,

अंग्रेज़ी सौतन  बीच में चली आई।

 

राष्ट्रभाषा, राजभाषा बनते-बनते मैं,

कामवाली सम्पर्क  भाषा बन आई।

 

कल रात  हिंदी मेरे सपने में आई,

सुनाने वह अपनी व्यथा चली आई।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन जानदार यथार्थ अभिव्यक्ति