श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’

(श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ जी  द्वारा गणित विषय में शिक्षण कार्य के साथ ही हिन्दी, बुन्देली एवं अंग्रेजी में सतत लेखन। काव्य संग्रह अंतस घट छलका, देहरी पर दीप” काव्य संग्रह एवं 8 साझा संग्रह प्रकाशित। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने पाठकों से साझा करते रहेंगे।  आज प्रस्तुत है आपकी कविता “प्रियतम…”।) 

☆ “प्रियतम…” ☆ श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ ☆

चातक  विहग   से   तृषित    अधरों    पर,

स्नेह अभिसिंचन कर संतृप्त कर पाऊं ।

 

ह्रदय  सिंधु  में  उच्चाटित   उर्मियों   के,

आवेग में मैं पूर्णतः समाहित हो जाऊं।

 

देह को आबद्ध करते स्नेहिल आलिंगन में ,

कोमल   मधुर   स्वप्न   लिए   सो   जाऊं।

 

प्रीत की मादक सुगंध लिए रक्तिम कपोंलों पर,

हौले   से    तरंगित  उन  श्वासों  में  खो  जाऊं।

 

कल्पनाओं  की  उड़ान  नहीं इतनी ऊंची,

कि तुझे सदा के लिए कल्पित कर जाऊं।

 

मेरे शब्द बिंब  छंद प्रतीक कथानक सब कहे,

बस  मिलन  के  विरह  के   गीत तेरे ही गाऊं।

 

इस   जन्म  उस  जन्म  हर  जन्म  और,

जन्म जन्मांतर तक बस तेरी हो जाऊं।

 

पलकें झपकाऊँ तो प्रतिबिंब हो तुम्हारा,

नयन  खोलूँ  तो  साक्षात्  तुम्हें  ही पाऊं। 

 

नींद के बोझ से शिथिल पलकों पर बस,

साथी   मधुरिम   स्वप्न   तेरे   धर   जाऊं।

 

किंचित भी ओझल होना  मत  प्रियतम,

तन मन उपवन सब वासंती कर जाऊं। 

 

मधुमास की पारिजात भीगी मिलन यामिनी,

पिया    अब    तो    नाम    तेरे    कर    जाऊं।

 

निशीथ  चंद्र के धवल चांदनी चुंबन,

तेरी   अलकों  पलकों  पे धर जाऊं।

© प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ 

संपर्क – 37 तथास्तु, सुरेखा कॉलोनी, केंद्रीय विद्यालय के सामने, बालाकोट रोड दमोह मध्य प्रदेश

ईमेल – plupadhyay1970@gmail:com  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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