श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।
आज प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था वर्तिका के 35वें वार्षिकोत्सव पर आपके संस्मरण वर्तिका… निरंतरता की यात्रा।)

ई-अभिव्यक्ति द्वारा 14 नवंबर 2018 को डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ जी द्वारा “वर्तिका” पर आधारित आलेख आप निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

संस्थाएं – वर्तिका (संस्कारधानी जबलपुर की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था) – डॉ विजय तिवारी “किसलय”

☆ संस्मरण ☆ वर्तिका… निरंतरता की यात्रा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(यह एक संयोग है की 1981-82 में मैंने वाहन निर्माणी प्रबंधन के सहयोग तथा स्व. साज जबलपुरी जी एवं मित्रों के साथ साहित्य परिषद, वाहन निर्माणी, जबलपुर की नींव रखी थी। 1983 के अंत में जब स्व साज भाई के मन में वर्तिका की नींव रखने के विचार प्रस्फुटित हो रहे थे, उस दौरान मैंने भारतीय स्टेट बैंक ज्वाइन कर लिया। नौकरी के सिलसिले में जबलपुर के साथ साज भाई का साथ भी छूट गया। 34 वर्षों बाद जब डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ जी और वर्तिका के माध्यम से  पुनः मिलने का वक्त मिला तब तक काफी देर हो चुकी थी। स्व साज भाई, श्री एस के वर्मा, श्री सुशील श्रीवास्तव, श्री एच एस खरे, श्री इन्द्र बहादुर श्रीवास्तव और मित्रों के साथ ‘प्रेरणा’ पत्रिका के प्रकाशन एवं वाहन निर्माणी इस्टेट सामाजिक सभागृह में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों के आयोजन के लिए दिन-रात की भाग-दौड़ के पल आज मुझे स्वप्न से लगते हैं और वर्तिका की वर्तमान जानकारी साझा करना मेरा व्यक्तिगत दायित्व लगता है।) 

वर्तिका… निरंतरता की यात्रा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र

१९९४, मैं मण्डला में पदस्थ था. अभिरुचि के अनुरूप लेखन, प्रकाशन के कार्य चल रहे थे. एक दिन अचानक फोन की घंटी बजती है, दूसरी ओर से आवाज आती है ” मैं साज जबलपुरी, वर्तिका, जबलपुर से बोल रहा हूं. आपका कविता संग्रह आक्रोश पढ़ा. हम वर्तिका के वार्षिकोत्सव में आपको सम्मानित करना चाहते हैं. क्या आप जबलपुर आ सकेंगे ?  मैंने सहर्ष स्वीकृति दे दी. रचनाकार को साहित्य जगत में उसकी रचनाओ के जरिये मान्यता मिले इससे बड़ा भला क्या सम्मान हो सकता है ! नियत तिथि, समय पर मैं रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर  के सभागार में पहुंचा. द्वार पर ही गुलाब के पुष्प से हमारा स्वागत किया गया, स्मरण नही पर संभवतः झौये से निकाल कर हर प्रवेश करने वाले को पुष्प देते हुये ये शायद विजय नेमा अनुज, और डा विजय तिवारी, सुशील श्रीवास्तव ही थे. इन सबसे यह मेरा प्रथम परिचय था, जो संबंध आज मेरी पूंजी बन चुका है.

इससे पहले भी मैने भोपाल, दिल्ली,  इलाहाबाद में अनेक बड़े साहित्यिक आयोजनो में कई भागीदारियां की थी पर  किसी साहित्यिक आयोजन में और वह भी गैर सरकारी, स्वागत की यह शैली सचमुच अद्भुत थी, जो मेरे लिये चिर स्मरणीय बन गई.

बाद में  मेरे जबलपुर स्थानातरण पर वर्तिका के अध्यक्ष और फिर  प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में मुझे कार्य करने के अवसर मिले.

जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो लगता है कि ऐसे ही छोटे छोटे प्रयोग और आत्मीयता, से  सबको अवसर, सबको सम्मान, सबको जोड़ना वर्तिका की विशिष्टता है.

वर्तिका  पंजीकृत सक्रिय साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्था है.संस्था की निरंतर आयोजन क्षमता उसकी सबसे बड़ी विशेषता है. संस्था ने जबलपुर में विगत अनेक वर्षो से प्रति माह अंतिम रविवार को मासिक काव्य गोष्ठी आयोजित कर एक रचनात्मक वातावरण बनाया है. बिना विवाद के वर्षो से ऐसे आयोजन निर्विघ्न होते रहना अद्भुत रिकार्ड  है.  जिन साहित्यकारो का जन्म दिवस जिस माह में होता है उनकी रचनाओ पर आधारित काव्य पटल का विमोचन शहर की साहित्यिक गतिविधियो के केंद्र ड्रीमलैंड फन पार्क में किया जाता था, जिसे ड्रीम लैंड फन पार्क के विस्थापन के बाद प्रतिष्ठित शहीद स्मारक में लगाया जाने लगा है. जहां यह काव्य पटल पूरे माह आम जनता के लिये पठन और मनन हेतु प्रदर्शित रहता है.आज जब पाठको की कमी होती जा रही है, ऐसे समय में नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने के लिये बड़े बैनर में कविता प्रकाशित कर उसे सार्वजनिक स्थल पर प्रदर्शित करने की वर्तिका की पहल ने साहित्य प्रेमियों का ध्यान खींचा है. काव्य गोष्ठी का आयोजन डा बी एन श्रीवास्तव चेरिटेबल ट्रस्ट मदन महल, ड्रीमलैण्ड फन पार्क के नये स्थान देवताल के सामने फिर हरिशंकर परसाई भवन  भातखण्डे विद्यालय, जानकी रमण महाविद्यालय, आनलाइन आदि स्थलों पर निरंतर रूप से जारी है. बीच बीच में किसी रचनाकार के निवास पर भी आयोजन होते रहे हैं, जिनमें विजय नेमा अनुज, डा विजय तिवारी, स्व सुनिता मिश्रा  के घर पर भी आयोजन संपन्न हुये हैं.

वर्तिका ने समय समय पर युवा रचनाकारो के मार्गदर्शन हेतु गजल कैसे लिखें ? दोहा कैसे लिखें ?, जैसे विषयों पर विद्वानो की कार्यशालायें आयोजित कर एक अलग क्रियाशील पहचान बनाई है.

प्रत्येक वर्ष संस्था वार्षिकोत्सव भी मनाती है. जिसमें संस्था  देश के विभिन्न अंचलो से अनेक रचना धर्मियो को आमंत्रित कर उनका सम्मान करती है.  वर्तिका से सम्मानित विद्वानो में स्व चंद्रसेन विराट, साहित्य अकादमी के निदेशक डा त्रिभुवन नाथ शुक्ल भोपाल,प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव,”विदग्ध”,आचार्य भगवत दुबे, श्री संजीव सलिल,दिल्ली के श्री जाली अंकल, हैदराबाद के स्व विजय सत्पट्टी, श्री अनवर इस्लाम, श्री कुंवर प्रेमिल डेली हंट के स्व आभास चौबे आदि कई विद्वान शामिल हैं.

इसके अतिरिक्त समाज के विभिन्न क्षेत्रो जैसे शिक्षा, चिकित्सा, समाज सेवा, आदि में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली विभूतियो को भी समाज के ही लोगो से सहयोग लेकर अलंकृत करने की  परम्परा है. जिससे ऐसे लोग दूसरो के लिये उदाहरण बनते हैं और उन्हें  अपने कार्यो को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन मिलता है. शिक्षा  के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान करने वालो को शिक्षाविद् श्रीमती दयावती श्रीवास्तव स्मृति  वर्तिका शिक्षा अलंकरण, चिकित्सा के क्षेत्र में डा बी एन श्रीवास्तव स्मृति अलंकरण अन्य सामाजिक गतिविधियों हेतु भी संस्था उल्लेखनीय कार्यो के लिए सम्मानित करती आ रही है.जो सुधीजन अपने स्वजनो की स्मृति में ये अवार्ड प्रदान करना चाहते हैं  उनसे वर्तिका के पदाधिकारी  संपर्क कर सहयोग राशि लेकर सम्मान आयोजित करते  हैं.

इस हेतु साहित्य प्रेमियो से प्रकाशित किताबो या निरंतर साहित्य सेवा के अन्य साक्ष्य सहित नामांकन आमंत्रित किये जाते  हैं. नामांकन हेतु कोई शुल्क न होना वर्तिका की खासियत है. नामांकन स्वयं या कोई भी साहित्य प्रेमी कर सकता है. नामांकन सादे कागज पर स्वयं का तथा नामांकित व्यक्ति या संस्था का पूर्ण विवरण लिखते हुये संस्था के पदाधिकारियो के पास भेजने होते हैं.  एक और विशेषता है कि वर्तिका साहित्य व समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय संस्थाओ को भी पुरस्कृत करती  है. गुंजन, गरीब नवाज कमेटी, प्रसंग, जागरण, एकता और शक्ति मंच आदि को वर्तिका सम्मान  प्राप्त हो चुके हैं.

वर्तिका की एक उच्चस्तरीय चयन समिति  प्राप्त नामांकनो तथा स्वप्रेरणा से  व्यक्तियो व संस्थाओ के योगदान के आधार पर अवार्ड का निर्णय करती है. निर्णायको में हमारे संरक्षक,पदाधिकारी व  वरिष्ठ  साहित्यकार प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध आदि रह चुके हैं.

इस अवसर पर सामूहिक काव्य संकलन, वार्षिक स्मारिका का प्रकाशन भी होता है. श्री विजय नेमा अनुज का सहयोग इस प्रकाशन में  अदभुत समर्पण और लगन का रहा है. वार्षिकोत्सव में इसका विमोचन अतिथियो के द्वारा किया जाता है. वर्तिका को कोई उल्लेखनीय वित्तीय सहयोग शासन से कभी नही मिला, हमारी वित्त पोषण व्यवस्था परस्पर आंतरिक सहयोग पर आधारित है, संरक्षक एक मुश्त राशि सहयोग स्वरूप देते हैं,जिसे बैंक में वर्तिका के खाते में जमा कर दिया जाता है, समय समय पर उसका उपयोग ही समिति की अनुशंसा पर किया जाता है. सदस्यता शुल्क, मासिक गोष्ठी में काव्य पटल शुल्क, तथा विशेष आयोजनो के लिये सदस्यो से स्वेच्छा से दी गई राशि से ही संस्था चलाई जा रही है.

संस्था के आयोजनो का साहित्यिक स्तर अति विशिष्ट रहा है. हमसे जुड़े अनेक रचनाकार राष्ट्रीय व वैश्विक क्षितिज पर महत्वपूर्ण साहित्यिक प्रतिष्ठा अर्जित करते दिखते हैं. हमारी एक विशेषता यह भी है कि जो हमसे एक बार जुड़ जाता है, हम उससे निरंतर जुड़े रहते हैं, स्व अंशलाल पंद्रे आजीवन हमसे जुड़े रहे,जबलपुर में कमिश्नर रहे श्री मदन मोहन उपाध्याय, श्री वामनकर  ढ़ेरो ऐसे नाम हैं जो वर्तिका से लंबे समय से जुड़े रहे हैं. न केवल साहित्यिक वरन पारिवारिक उत्सवो सहित जीवन के हर सुख दुख के क्षेत्र मे  वर्तिका के सदस्य परस्पर प्रेम भाव से जुड़े दिखते हैं यही संबंध वर्तिका की वास्तविक पूंजी है.

मैं वर्तिका से जुड़े रहने में गर्व महसूस करता हूं. व वर्तिका की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं. इस वर्ष मैं संस्था के आयोजन में यहां न्यूजर्सी अमेरिका से अपने शब्दों और पुरानी यादों के इस लेख से ही अपनी सहभागिता कर पा रहा हूं. सभी सम्मानितो को बधाई और आयोजन की सफलता की मंगलकामनाएं

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

वर्तमान में न्यूजर्सी अमेरिका

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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