मानस के मोती

☆ ॥ मानस में नारी आदर्श सीता – भाग – 2 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

नारी जीवन को यदि विभिन्न आयामों में देखा जाय तो दो स्पष्ट आयाम हैं-(1)  बच्ची के जन्म से विवाह तक जब वह पिता के घर में बेटी के रूप में रहती है-शिक्षा पाती है, कलाओं में निपुणता पाती है, घर के कामकाज में हाथ बटा कर गृहस्थी का संजोना सवाँरना सीखती हैं। विनम्रता, विनय, शालीनता और सामाजिक शील और  मर्यादाओंं की रक्षा करना देखती और सीखती है और (2) विहाहोपरान्त जब वह पतिगृह जाती है और अपनी गृहस्थी की स्वामिनी होती है। पतिगृह में वह वधू, पत्नी, माता और गृहस्वामिनी की भूमिका निभाती है और पति तथा परिवार की देखभाल करते हुए परिजनों और पुरजनों में सम्मान की अधिकारी भी बन जाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम को यदि पुरुष वर्ग के लिये आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श शासक और आदर्श राजा के रूप में प्रस्तुत किया गया है तो तुलसी ने जगत्जननी सीता को भी विभिन्न रूपों में आदर्श एवं मर्यादित नारी के रूप में प्रस्तुत किया है जिसका यथा प्रसंग मनोज्ञ वर्णन है और भारतीय नारी के अनुकरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान संकेत देता है। वास्तव में नारी का सच्चा श्रंृगार- रत्नजडि़त आभूषणों से नहीं वरन उसकी सरलता सदाचार और चरित्र से होता है। ‘त्रपागंनाया भूषणम्ïÓ विनम्रतापूर्ण संकोच, लज्जाशीलता भारतीय संभ्रान्त नारी के गुण हैं जो सीता के व्यवहार में आजीवन लक्षित होते हैं-देखिए-पिताके घर जनकपुर में वे माता-पिता की लाडि़ली और सहेलियों की प्यारी हैं- राम लक्ष्मण गुरु जी की पूजन के लिए फूल लेने पुष्प वाटिका में हैं तभी सखियों सहित सीता वहाँ गौरी पूजन हेतु मंदिर में पहुँचती हैं। सीताजी की दृष्टि श्री राम पर अकस्मात पड़ती है तब

(1)       

‘देखि रूप लोचन ललचाने-हरषे जनु निजनिधि पहिचाने

लोचन मग रामहि उर आनी-दीन्हें पलक कपाट सयानी’

प्रेम विभोर सीता से एक वाग्पटु सखी कहती है-

‘बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू, भूप किसोर देखि किन लेहू’

सीता आँखे खोलती हैं और –

नखसिख देखि राम कै सोभा-सुमिर पिता पनु मनु अति क्षोभा

तभी एक अन्य सखी कहती है-‘पुनि आउब एहि बिरियाँ काली’

तो सीता की मनोदशा देखिए-‘गूढ़गिरा सुन सिय सकुचानी’ कुछ बोली नहीं। मंदिर में जाकर पूजा करती हैं और प्रार्थना करती है- हे माता, ‘मोर मनोरथ जानहुँ नीके, बसहु सदा उरपुर सब ही केÓ तब गौरी माँ ने आशीष दिया-कैसे?- विनय प्रेमबस भई भवानी-खसीमाल मूरत मुसकानी,

सुन सिय सत्य आशीष हमारी-पूजिहि मन कामना तुम्हारी

सीता जी का राम के प्रति आकर्षण राम को पति रूप में पाने की मनोकामना देवी से प्रार्थना, सखियों का परिहास और देवी जी द्वारा सीता की मनोकामना की पूर्ति का आशीष-सब कुछ संकेतों द्वारा बड़ेमनोज्ञ वर्णन द्वारा प्रस्तुत है। विवाह के लिए एक शब्द का भी उपयोग बिना किये तुलसी दास जी ने सीता जी और उनकी सखियों के शील और मर्यादा को बनाये रख पाठकों को यह बता दिया कि सीता राम को पति रूप में पाने की चाह रखती थी और उनने यह बात देवी पूजन में देवी जी से कहकर आशीष में पा लिया। इस प्रसंग की तुलना आज के युग में टी. व्ही.  में प्रदर्शित किए जा रहे ऐसे विभिन्न प्रसंगों में किये जाने वाले डायलोग्स से कीजिए और आनंद लीजिये।

(2) सीता की शालीनता का एक अन्य सुन्दर उदाहरण विवाह मंडप में के अवसर का है-

राम को रूप निहारति जानकी कंगन के नग की परछाहीं।

या ते सबै सुधि भूल गई, कर टेक रही पल टारत नाहीं।

आदर्श पुत्री के रूप में सीता की लोक प्रियता उनके विहाहोपरान्त बिदाई के अवसर पर देखिए

(3)       

प्रेम विवस नर नारी सब, सखिन सहित रनवास,

मनहू कीन्ह विदेहपुर करुणा  विरह निवास।

पशुपक्षियों की दशा-

सुक सारिका जानकी ज्याये, जिनहिं पिंजरन्हि राखि पढ़ाये।

व्याकुल कहंहि-कहाँ वैदेही, सुन धीरज परिहरहि न केही,

जब भये व्याकुल खग मृग एहि भाँति, मनुज दशा कैसे कहि जाती।

स्वयं पिता जनक जी-

सीय विलोकत धीरता भागी, रहे कहावत परम विरागी

लीन्ह राय उर लाय जानकी, मिटी महा मरजाद ज्ञानकी॥

अयोध्या में सीता की मर्यादा, शील और आदर्श के अनेकों प्रसंग हैं, माता ने विवाह की बिदा समय जो उपदेश दिया था उसे सीता ने गाँठ में बाँध रखा था-

सास ससुर गुर सेवा करहू, पति सख लख आयसु अनुसरहू

होयेहु संतत पियहि पियारी- चिर अहिवात आशीष हमारी।

क्रमशः…

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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