श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका – भाग – 1 ??

‘हम हैं, इसलिए मैं हूँ’ अनन्य होते हुए भी सहज दर्शन है। सामूहिकता में व्यक्ति के अस्तित्व का बोध तलाशने की यह वृत्ति पाथेय है। मछलियों की अनेक प्रजातियाँ समूह में रहती हैं। हमला होने पर एक साथ मुकाबला करती हैं। छितरती नहीं और आवश्यकता पड़ने पर सामूहिक रूप से काल के विकराल में समा जाती हैं।

लोक इसी भूमिका का निर्वाह करता है। वहाँ ‘मैं’ होता ही नहीं। जो कुछ हैे, ‘हम’ है। राष्ट्र भी ‘मैं’ से नहीं बनता। ‘हम’ का विस्तार है राष्ट्र। ‘देश’ या ‘राष्ट्र’ शब्द की मीमांसा इस लेख का उद्देश्य नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मानकों ने राष्ट्र (देश के अर्थ में) को सत्ता विशेष द्वारा शासित भूभाग  माना है। इस रूप में भी देखें तो लगभग 32, 87, 263 वर्ग किमी क्षेत्रफल का भारत राष्ट्र् है। सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो इस भूमि की लोकसंस्कृति कम या अधिक मात्रा में अनेक एशियाई देशों यथा नेपाल, थाइलैंड, भूटान, मालदीव, मारीशस, बाँग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, तिब्बत, चीन तक फैली हुई है। इस रूप में देश भले अलग हों, एक लोकराष्ट्र है। लोकराष्ट्र भूभाग की वर्जना को स्वीकार नहीं करता। लोकराष्ट्र को परिभाषित करते हुए विष्णुपुराण के दूसरे स्कंध का तीसरा श्लोक  कहता है-

उत्तरं यत समुद्रस्य हिमद्रेश्चैव दक्षिणं

वर्ष तात भारतं नाम भारती यत्र संतति।

अर्थात उत्तर में हिमालय और दक्षिण में सागर से आबद्ध भूभाग का नाम भारत है। इसकी संतति या निवासी ‘भारती’ (कालांतर में ‘भारतीय’) कहलाते हैं।

क्रमशः…

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments