श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका – भाग – 1 ??

लोक अर्थात समाज की इकाई। समाज अर्थात लोक का विस्तार। यही कारण है कि ‘इहलोक’, ‘परलोक’ ‘देवलोक’, ‘पाताललोक’, ‘त्रिलोक’ जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ। गणित में इकाई के बिना दहाई का अस्तित्व नहीं होता। लोक की प्रकृति भिन्न है। लोक-गणित में इकाई अपने होने का श्रेय दहाई कोे देती है। दहाई पर आश्रित इकाई का अनन्य उदाहरण है, ‘उबूंटू!’

दक्षिण अफ्रीका के जुलू  आदिवासियों की बोली का एक शब्द है ‘उबूंटू।’ सहकारिता और प्रबंधन के क्षेत्र में ‘उबूंटू’ आदर्श बन चुका है। अपनी संस्था ‘हिंदी आंदोलन परिवार’ में अभिवादन के लिए हम ‘उबूंटू’ का ही उपयोग करते हैं। हमारे सदस्य विभिन्न आयोजनों में मिलने पर परस्पर ‘उबूंटू’ ही कहते हैं।

इस संबंध में एक लोककथा है। एक यूरोपियन मनोविज्ञानी अफ्रीका के आदिवासियों के एक टोले में गया। बच्चों में प्रतिद्वंदिता बढ़ाने के भाव से उसने एक टोकरी में मिठाइयाँ भर कर पेड़ के नीचे रख दी। उसने टोले के बच्चों के बीच दौड़ का आयोजन किया और घोषणा की कि जो बच्चा दौड़कर सबसे पहले टोकरी तक जायेगा, सारी मिठाई उसकी होगी। जैसे ही मनोविज्ञानी ने दौड़ आरम्भ करने की घोषणा की, बच्चों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा, एक साथ टोकरे के पास पहुँचे और सबने मिठाइयाँ आपस में समान रूप से वितरित कर लीं। आश्चर्यचकित मनोविज्ञानी ने जानना चाहा कि यह सब क्या है तो बच्चों ने एक साथ उत्तर दिया,‘उबूंटू!’ उसे बताया गया कि ‘उबूंटू’ का अर्थ है,‘हम हैं, इसलिए ‘मैं’ हूँ। उसे पता चला कि आदिवासियों की संस्कृति सामूहिक जीवन में विश्वास रखता है, सामूहिकता ही उसका जीवनदर्शन है।

क्रमशः…

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
3 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

3 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
माया कटारा

‘उबूंटू’ दक्षिण अफ्रीका के जुलू बोली का एक शब्द है ।
हम हैं इसलिए मैं हूँ – हिंदी आंदोलन परिवार का अभिवादन है
राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की अहं भूमिका है ।

लतिका

अभिनंदन!
जानकारीपूर्ण आलेख, उत्सुकता जगानेवाला विषय है.🌍

अलका अग्रवाल

हिंदी आंदोलन परिवार का ‘उबूंटू’ जो दक्षिण अफ्रीका के जुलू आदिवासियों के शब्द से लिया गया शब्द है राष्ट्रीय एकात्मता का सुंदरतम उदाहरण है। अप्रतिम आलेख।