श्री वीरेंद्र प्रधान

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री वीरेंद्र प्रधान जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन (कवि, लघुकथाकार, समीक्षक)। प्रकाशित कृति – कुछ कदम का फासला (काव्य-संकलन), प्रकाशनाधीन कृति – गांव से बड़ा शहर। साहित्यकारों पर केन्द्रित यू-ट्यूब चैनल “प्रधान नामा” का संपादन। )

☆ कविता ☆ महानगर वाया नगर ☆ श्री वीरेंद्र प्रधान  ☆

पहले उच्च शिक्षा पाने कम तादाद में

विलायत जाते थे कुछ लोग

और अंग्रेजी कानून में शिक्षित होकर

कूद पड़ते थे अंग्रेजों के ही विरुद्ध

स्वतंत्रता संग्राम में

त्याग कर सब निजी लाभ

भोग और उपभोग।

भीड़ का हिस्सा न बनकर

अलग रहते थे भीड़ से

और एक रास्ता दिखाते थे भीड़ को

आजाद पंछी बन उड़ते थे

छोड़कर अपने नीड़ को।

 

आज जाते हैं सैकड़ों/हजारों

शिक्षित होने नगर में

नगर से महानगर में

मगर वापिस नहीं लौटते।

नगर में ही बस जाता है गांव

याद रहते हैं

बस सड़क, बिजली और पानी।

खपा देते हैं

रोजी-रोटी और आर्थिक बेहतरी

के संघर्ष में अपनी जवानी।

भीड़ का ही बन जाते हैं हिस्सा

नहीं करते भीड़ से

अलग दिखने की नादानी।

© वीरेन्द्र प्रधान

संपर्क – जयराम नगर कालोनी, शिव नगर, रजाखेड़ी, सागर मध्यप्रदेश 

मो – 7067009815

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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