श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता ☆ पेड़ और तिनके… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

आत्मकथ्य: कोरोना के खाली दिनों में पुरानी डायरी से मिली यह कविता:पेड़ और तिनके। 6 जून, 1981 की। कभी प्रकाशित भी नहीं करवाई। आज आपकी अदालत में
एक मजेदार बात और बता दूं । यह मेरी डायरी पर मेरे बोलने पर लिखावट तरसेम गुजराल की है। यानी मैं बोलता रहा और वे लिखते रहे जुगलबंदी

बहुत बाद में

मालूम हुआ कि

पेड़ कहीं नहीं भागते, न आगे, न पीछे

पेड़ तो रहते हैं जड़

एक स्थान पर

फलते फूलते बसाते हैं घर ।

भागते तो हम हैं

यहां से वहां

फिर वहां से यहां

रोज़ी रोटी की तलाश में

प्रवासी मजदूरों की तरह ।

जी जनाब

यह आज की नहीं है बात

युगों युगों से यही है इतिहास

तिनके जब तक रहेंगे अकेले

तिनके जब तक नहीं देंगे

एक दूजे का साथ

तब तक यही होगा हाल ।

हालांकि तिनके अगर मिल जायें तो

वो तिनके नहीं

रस्सा कहलायेंगे और हर किसी के

गले का फंदा बन सकेंगे ।

जी का जंजाल बन सकेंगे

बस भेद की

इतनी सी है बात ।

पर पेड़ के सामने हमारी क्या बिसात ?

पेड़ इकट्ठे रहते हैं

और बाग बन जाते हैं ।

हर सुरक्षा के हकदार हो जाते हैं

उनकी सुरक्षा बढ़ जाती है

आंख तन जाती है

जो कोई बाग के फल फूल देखे ।

और जगह जगह बिखरे रहने से

हम सिर्फ तिनके कहलाते हैं

हर किसी के पांव तले कुचले जाते हैं ।

पेड़ और पेड़ों के पहरेदार

हमारा तमाशा देखते हैं

हमारा साथ कभी नहीं देते

इसलिए कि हम हमेशा

हवा में उड़ते

तिनके जैसे होते हैं

और आप अच्छी तरह जानते हैं कि

तिनकों के पैर तले कोई ज़मीन नहीं होती

हमारी भी कोई जड़ नहीं

और वे पेड़?

क्या बात करते हैं आप ?

युगों युगों से

जमीन में कहीं भीतर तक

अपनी जड़ें जमाये

किसी विजेता की तरह

बांहें फैलाये रहते हैं

आप ही कहिए

हमारी क्या बिसात ?

 

©  श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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