श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता राग।)

☆ कविता – राग ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

आजन्म रक्तरंजित रहते आए होंगे

भीम के घुटने

पांडवों के संग वन-वन भटकते

जब भी द्रौपदी को प्यास लगी

भीम ने घुटनों से

फोड़ डाली कोई चट्टान

भीम में बुद्धि ज़रा कम थी

इसलिए राग ज़रा ज़्यादा

युधिष्ठिर में राग ज़रा कम था

बुद्धि बहुत ज़्यादा

स्वर्गारोहण के समय

द्रौपदी जब हिम में धँसी

तो हाथ बढ़ाकर भीम ने

थाम लेना चाहा उसे

पर युधिष्ठिर ने कहा-

‘बस यहीं तक था

हमारा और उसका साथ’

लाचार भीम चलता गया

अपने भाइयों के साथ

रह-रहकर उसकी आँखें

कातर द्रौपदी को देखतीं

और आँखों से टपक जाता

कोई तप्त आँसू

पिघल जाती पैरों तले की हिम

आख़िर ओझल हो गई द्रौपदी

आख़िर सूख गये भीम के आँसू

आख़िर हिम में धँस

स्वयं हिम हो गया भीम

सुनते हैं

हिम हुए भीम की आँखें

आज भी वहाँ देखती हैं

जहाँ हिम में धँसी थी द्रौपदी।

 

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क –  406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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Shyam Khaparde

सुंदर रचना