॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (71 – 75) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -16

 

निज रानियों संग नहाते हुए कुश, सरयू के जल में लगे यों सुहाने।

जैसे कि आकाश गंगा में हो इंद्र, सुर अप्सराओं के संग में नहाने।।71।।

 

श्रीराम ने वन में कुम्भज ऋषि से विजयशील दिव्या भरण जो था पाया।

दिया उनने था कुश को, पर कुश ने उसको नहाते अलक्षित था जल में गिराया।।72।।

 

कर स्नान जल क्रीड़ा संग रमणियों के, जब कुश निकल जल के तट पर थे आ।

तो उस वलय रहित लख निज भुजा कों, विस्मित हुये चैन मन में ने पाये।।73।।

 

श्री के वशीकरण का था वलय वह, जो था मिला उन्हें अपने पिता से।

अतः धीर कुश हानि से थे दुखी लोभ नहिं, उन्हें सम फूल औं’ संपदा थे।।74।।

 

आदेश देकर कुशल धीवरों को वलय खोजने के लिये तब लगाया।

यत्नों से भी जब वह न उनको मिला उनने कर बद्ध हो आके कुश को बताया।।75।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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