?  शहीद दिवस – महात्मा को श्रद्धांजलि ?

☆ श्री सुरेश पटवा / श्री अरुण डनायक ☆ 

श्री सुरेश पटवा

गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने जिन्हे महात्मा की उपाधि से नवाजा था। जिन्हें चर्चिल “अधनंगा फकीर “कहता था। जिनके बारे मे महान वैज्ञानिक आईंसटीन ने कहा था कि –  “आने वाली नस्लें यह विश्वास नही करेंगी कि हाड़ मांस का ऐसा पुतला कभी जमीन पर चलता फिरता था।”

30 जनवरी 1948 को शाम की प्रार्थना के वक़्त द्वेषपूर्ण भावना से प्रेरित एक मानव ने महामानव के सीने मे तीन गोली नमस्कार की मुद्रा मे आकर उतार दीं।

हे राम! के शब्द के साथ क्षीण काया पोतियों आभा और केनू के कंधों से फिसलकर फर्श पर धराशाही हो गई।

महात्मा को श्रद्धांजलि

 – श्री सुरेश पटवा

☆ ☆ ☆ ☆ ☆ 

श्री अरुण कुमार डनायक

आज ही के दिन 30 जनवरी 1948 को एक महामानव, मानवता के अपने संकल्प को पूरा करने, सर्वधर्म सद्भाव बढ़ाने, हमें अहिंसक बने रहने, देश की एकता को बनाए रखने के  विचारों का समर्थक एक हत्यारे की तीन गोलियों का शिकार हो गया।  महात्मा का शरीर जब इस संसार से देवलोक गया तो सारे संसार में शोक की लहर छा गई । सभी ने उन्हें श्रद्धांजलियाँ दी :

मनुष्यों मे से एक देव उठ गया। यह कृशकाय छोटा सा व्यक्ति अपनी आत्मा की महानता के कारण मनुष्यों में देव था।

– राष्ट्रपति ट्रूमेन

हमारे सामने वे आज एक महान आत्मिक शक्ति के रूप में आने वाली संकटपूर्ण स्थिति के दिनों में हमारा और अपने लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए खड़े हैं।

– स्टेफर्ड क्रिप्स (ब्रिटिश लेबर पार्टी के नेता, क्रिप्स मिशन के संयोजक)

 वे इस शताब्दी के महानतम व्यक्ति हो सकते हैं। लोग कभी कभी लेनिन को उनके  बराबर रखते हैं, परन्तु  लेनिन का साम्राज्य इस दुनिया का था और हमें यह भी पता नहीं कि दुनिया आगे चलकर उसके साथ कैसा  व्यवहार करेगी। गांधीजी के साथ ऐसी बात नहीं थी। उनकी जड़ें देश काल से परे थी और यहीँ से उन्हें शक्ति प्राप्त होती थी।

– ई एम फास्टर ( अंग्रेज उपन्यासकार, लघु कथा लेखक, व उदारवादी)

हिन्दू धर्म गांधीजी को अपना मानने का दावा कर सकता है , परन्तु उनकी आत्मा उन सभी धर्मों की गहरी से गहरी भूमि से अवतरित हुई थी, जहाँ पर सब धर्मों का मेल होता है।

– एल डब्लू ग्रेनस्टेट ( अंग्रेज शिक्षाविद ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय मे प्रोफ़ेसर)

हालंकि चरखे के प्रति गांधीजी की आस्था पर हँसना बहुत आसान है, विशेषकर ऐसी अवस्था में जबकि एक ओर कांग्रेस अपने चंदे के लिए ज्यादातर धनी  हिन्दुस्तानी मिल मालिकों की उदारता पर निर्भर थी ,तो भी चरखे का उनके जीवन दर्शन के मूलभूत सिद्धांतों में एक विशेष स्थान था, यह बात बिलकुल सत्य थी  और मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है।

– अर्ल आफ हेलिफेक्स (लार्ड इरविन) भारत के पूर्व वाइसराय

महात्मा जी के तीन आदर्शों का मुझ पर बहुत  प्रभाव पडा – पहला  ब्रह्मचर्य का आदर्श मानसिक पवित्रता से दैहिक पवित्रता पैदा कर उन्होंने अपनी वासना को बिलकुल  जीत लिया थाI दूसरा था निर्धनता का आदर्श—सर के ऊपर छत और धूप और सर्दी  से रक्षा कर सकें ऐसे अति साधारण कपड़ों के अलावा उनकी कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं थी।तीसरा अहिंसा का आदर्श—वे मानते थे कि हिंसा को अहिंसा से , घृणा को प्रेम से और अहंकार को विनम्रता से जीतना चाहिए।

– थाकिन नू ( बर्मा के बौद्ध विचारक)

ईसाइयत को और अधिक स्पष्ट रूप से देखने में , किसी विशेष चर्च या ईसाइयत की किसी शाखा की अपेक्षा उन्होंने मेरी अधिक मदद की और निश्चय ही यह बात  उनके व्यापक विचार की सूचक है।

– सिविल थार्नडायक (प्रसिद्द अंग्रेज फिल्म कलाकार)

वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिसने यूरोप की पाश्विकता का सामना सामान्य मानवी यत्न के साथ किया और इस प्रकार वे सदा के लिए सबसे ऊंचे उठ गएI आने वाली पीढ़िया श्याद मुश्किल से ही यह विश्वास कर सकेंगी कि गांधीजी जैसा हाड़ मांस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ था।

– अल्बर्ट आइन्स्टीन (प्रसिद्द वैज्ञानिक) 

शांति पुरुष और अहिंसा के दूत गांधीजी धर्मान्धता के विरूद्ध- जिसने भारत की नवार्जित स्वाधीनता के लिए ख़तरा पैदा कर दिया था -संघर्ष में हिंसा द्वारा शहीद की भांति मरे। वे इस बात को समझ चुके कि राष्ट्र निर्माण के महान कार्य को हाथ में लेने से पहले इस कोढ़ को मिटाना होगा।

– लार्ड माउंटबैटन (पूर्व वायसराय)

 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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