श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – वह  ??

‘वह’ शृंखला की एक और कविता प्रसूत हुई। पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ।

 

उसके भीतर

बसती है एक बतक्कड़,

बहुत कुछ, सब कुछ

उससे कहना चाहती है वह,

किस्से-कहानी, आपबीती-जगबीती

सिर्फ उसे सुनाना चाहती है वह,

फिर सुनकर उसका रूखापन

अनमनी-सी चुप हो जाती है वह !

 

©  संजय भारद्वाज

अपराह्न 1:48 बजे, 9.1.20 2 2

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
अलका अग्रवालो

मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।अपने भीतर बतक्कड़ी को वह उसे ही सुनाना चाहती है। पर, उसका रुखापन देख वो अनमनी सी हो जाती है।

माया कटारा

वह की सृजित एक और मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई , उसके हाथ केवल
लगा रूखापन—-संवेदनशीलता की चरम-सीमा..