डॉ प्रतिभा मुदलियार

(डॉ प्रतिभा मुदलियार जी का अध्यापन के क्षेत्र में 25 वर्षों का अनुभव है । वर्तमान में प्रो एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय। पूर्व में  हांकुक युनिर्वसिटी ऑफ फोरन स्टडिज, साउथ कोरिया में वर्ष 2005 से 2008 तक अतिथि हिंदी प्रोफेसर के रूप में कार्यरत। कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत।  इसके पूर्व कि मुझसे कुछ छूट जाए आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया डॉ प्रतिभा मुदलियार जी की साहित्यिक यात्रा की जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें –

जीवन परिचय – डॉ प्रतिभा मुदलियार

☆ ई मेल @ अनजान ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार ☆

( यह रचना कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उस समय प्राप्त हुई थी जब मैं स्वयं भी कोरोना से जूझ रहा था। आज मैं उस दौर को याद करता हूँ तो सिहर जाता हूँ। हम समय के साथ कितनी जल्दी अवसाद भरे दौर को पिछली ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह भूल जाते हैं। डॉ प्रतिभा मुदलियार जी की उसी रचना को प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसे पढ़कर संभवतः आप भी अतीत में झाँक सकें। यह दस्तावेज लिख दिया गया है ताकि सनद रहे और वक्त जरुरत काम आवे ….. – हेमन्त बावनकर)

प्रिय,

आज एक लंबे अंतराल के बाद तुमसे मुखातिब हुई हूँ। तुम तो जानते ही हो मैं तुमसे तभी बात करती हूँ, जब मैं भीतर से डिप्रेस हो जाती हूँ या फिर बहुत खुश हो जाती हूँ। वैसे भी नॉर्मल समय में हम बात करें भी तो क्या करें। तुम वहाँ उतने दूर अपनी सारी जिम्मेदारियों को संभालते अकेले… पता नहीं कितनों की गुहार सुनते हो… और अतंतः तटस्थ रहकर अपनी अहम भूमिका निभाने में तप्तर..।

कोविड-19 की दूसरी लहर ने समस्त संसार का हाल बेहाल कर रखा है। पहली लहर के डर से अभी बाहर निकल ही रहे थे कि दूसरी लहर अपनी चपेट में सबको लीलती जा रही है। ऑक्सीजन और वेंटीलेटर, बेड जैसे शब्द जो कभी हमारी जिंदगी में झांकते ही नहीं थे अब वे हमारे रोज़ की बोलचाल की भाषा में आ गए हैं। हर घर करोना के डर से सहमा सहमा सा है।

आज सुबह से परेशान हूँ। उठते ही सिर भारी भारी सा लग गया। आँख भी सही समय पर खुली नहीं.. थोडी देर से ही जग गयी थी.. उठी और तुरंत लेट भी गयी.. पर मन नहीं माना और उठ ही गयी और सुबह के कामों में लग गयी। रेडिओ पर सुबह की न्यूज सनकर मन अधिक घायल हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि कोविड की तीसरी लहर छोटे बच्चों पर वार कर सकती है…। पहली लहर में वृद्ध, दूसरी में युवा और तीसरी में बच्चे!!  और तिस पर शाम के पेपर में बीस नवजात बच्चों को कोविड- पॉजिटीव होने की खबर ने मुझे अंतर्मुखी कर दिया है। क्या बात करूँ मैं और क्या कहूँ..। आजकल अपनी हो या किसी की भी तबियत थोडी सी भी नासाज़ हो जाती है तो चिंता सी हो जाती है। पिछले पंद्रह दिनों से जो खबरें आ रही थीं उससे तो मेरी सोच समझ पर जैसे पाला ही पड़ गया था।

सुबह से सिर दर्द से परेशान थी। सोचा, पिछले कुछ दिनों से लैप टाप पर लगातार काम कर रही हूँ… लॉक डाउन की वजह से दोपहर के समय में कोई न कोई फिल्म देख रहे हैं.. यही कारण हो जिसका आँखों पर असर हो रहा होगा इसलिए सर दर्द अचानक बढ गया। साथ ही बाजुओं का पुराना दर्द भी उठ गया तो कुछ परेशान सी हो गयी। हालाँकि पेन किलर ले ली और फिर ऑन लाईन क्लास में जुट गयी। लेक्चर देते समय सारी परेशानियाँ रफुचक्कर हो जाती है मेरी। मुझे भीतर से एक अनजान सी खुशी मिलती है और स्ट्रैस भी कम हो जाता है। ऑन लाइन क्लासेस में फिजिकल क्लासेस सा मजा नहीं आता पर अब इसकी आदत सी हो गयी है। अपने कमरे में बंद होकर लैप-टॉप की विंडों पर छोटे छोटे वृत्तों में पार्टिसिपेंटस से सेल्फी के फोटों अजीबोगरीब नामों से मुखातीब होना अजीब लगता है। ये बच्चे भी कितने क्रिएटीव हैं खुद को एक शानदार नाम देने में..एक छात्र है जिसका नाम शानूर है और उसने अपना नाम रखा है किंग ऑफ नूर… आहा…..। खैर अब तो इस तालाबंदी में ऑनलाइन क्लास मेरी लाइफ लाइन सी हो गयी है। अब तो मैं पुस्तकें भी ऑनलाइन पढ़ रही हूँ। मोबाइल पर फॉंट को इनलार्ज कर पढना सुविधाजनक होता है… हाँ कुछ नुकसानदेह भी हैं…फिर भी समय की धारा के साथ चलना तो है ही न।

कल से अच्छी खबरे नहीं आ रही हैं। मेरे दो छात्रों की पॉजीटीव हो जाने की खबर से अंदर से हिल गयी… उनसे बात करूँ भी तो कैसे सोच ही रही थी कि खबर आयी मेरी कजिन को अस्पताल में बेड ही नहीं मिल रहा है…. जबकि भाई स्वयं डॉक्टर है…. पैसा, सिफारिश या प्रतिष्ठा कुछ भी काम नहीं आ रहा था… काफी सारी जद्दोजहद के बाद किसी नीजि अस्पताल में उसे बेड मिला….थोडी राहत मिली… सोचने लगी जिनके पास पैसा है उनकी हालत ये है तो उनका क्या जिनके पास पैसा भी नहीं है और ना ही सिफारिश… वे क्या करेंगे… क्या इस महामारी से मुक्त होने के लिए मात्र मौत ही एकमात्र अंतिम रास्ता है? … कभी पापा ने कहा था.. गरिबों के लिए मौत ही एक मात्र दवा है…उस दिन मुझे पापा की बात पर बहुत गुस्सा आया था.. लेकिन आज जिन स्थितियों को सुन रहे हैं, देख रहे.. लोगों को ऑक्सीजन के लिए  रोते देखते हैं तो लगता है कि बात में सच का कुछ अंश नजर आता है….हे भगवान…. टीवी पर खबरें देख रही थी, सुना कि किसी अस्पताल में  एक दिन में 20 मरीजों की मौत हो गई थी क्योंकि अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पाइप के जरिए पहुंचने वाली ऑक्सीजन खत्म हो गई थी… मरीज धीरे-धीरे बेहोशी की हालत में पहुंच गए…. आज की तारिख में लोग अक्षरश: सांस लेने के लिए झटपटा रहे हैं… सुन सुन कर डिप्रेशन आ रहा है। सिर दर्द की गोली लेने पर भी सर दर्द खतम नहीं हो रहा था.. आँखें बंद कर लेटने पर भी नींद नहीं आ रही थी आखिर सिर पर तेल डाला और काफी समय बाद थोडी राहत सी मिली। पर मन पता नहीं क्या क्या सोच कर परेशान हो रहा था। सोशल मीडिया पर भी वही सारी बातें होती हैं.. इस सदी के इस दशक ने पता नहीं कौनसा पाप किया होगा जो अपने माथे पर करोना लिख लाया हैं….।

लग रहा था कि करोना हमारी आँखें खोल रहा है। हमने पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ किया है उसकी सज़ा हमें मिल रही है और प्रकृति अपना प्रतिशोध इस तरह ले रही है। पर क्या सचमुच हम संज्ञानी हो रहै हैं…. ऑक्सीजन की किल्लत और अस्पतालों में होनेवाली मौतों की खबरें दिल दहला देनेवाली है… पता चला है कि इसमें भी भ्रष्ट्राचार है, कालाबाज़ारी है, डुप्लिकेट दवाई देकर लोगों को ठगा जा रहा है…बेड बुकिंग कर लोगों को ट्रीटमेंट  लेने से वंचित कर रहे हैं…  कितने जलील हैं ये लोग… इन्सान कहें इन्हें? डॉक्टरों को हम भगवान का रूप समझते हैं…और वो भी…. इन सबका अंत अब कहाँ जाकर होगा… लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनमें अभी इमानदारी, इन्सानियत बाकी है… जो प्लाज्मा दे रहे हैं, बेड दिलाने, ऑक्सीजन मुहैय्या करने में जरुरतमंदों की मदद कर रहे हैं… मानवता के प्रति समर्पित इन लोगों को देखने के बाद इस 21 वीं सदी के इन्सान की इन्सानियत पर दोबार विश्वास होता है… और लगता है… अच्छाई मरी नहीं है वह अभी भी कायम है।

मौजूदा स्थितियों में तुम्हें नहीं लगता की हम स्वार्थी हो गए हैं.. सेल्फ सेंटर्ड… हमारे भीतर का प्रेम का स्त्रोत सूखता जा रहा है…। दूसरी ओर स्थितियाँ ऐसी भी हो गयी हैं कि हम कुछ भी न करने की स्थिति में पहूँच गए हैं… बुत बन गए हैं..लोग प्राणवायू के लिए तडप रहे हैं और हम प्राणहीन…ऐसे में लगता है कोई झकझोरे में हमें… हमारी नसे काटकर देखें कि हमारी धमनियों में बहनेवाला खून कहीं जम तो नहीं गया…वर्तमान स्थितियों में हमारी सांसे तो चल रही हैं पर उनका संगीत नदारद हो गया है। न हम प्रेम करने की स्थिति में है न हीं लडने की….दूरियां बनाकर मास्क चढाएं सहमें सहमें डर के सायें में जिए जा रहे हैं… एक दूसरे की चिंता में घुले जा रहे हैं… जीवन का कोलाहल थम सा गया है… सन्नाटा छाया है सडकों पर ….खौफ का मंजर है… इस महामारी में इन्सान या तो खबर बन रहा है या फिर एक संख्या मात्र। शोहरत बुखारी ने का एक शेर याद आया है, वे कहते हैं,

किस अजाब में छोडा है तुने इस दिल को

न सुकून याद में तेरा न भूलने में करार।

                                                                                                                                            तुम्हारी मैं

©  डॉ प्रतिभा मुदलियार

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी अध्ययन विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मानसगंगोत्री, मैसूर 570006

दूरभाषः कार्यालय 0821-419619 निवास- 0821- 2415498, मोबाईल- 09844119370, ईमेल:    [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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