डॉ. हंसा दीप

☆ दो लघुकथाएं – तृष्णा और सम भाव  ☆ डॉ. हंसा दीप

☆ तृष्णा ☆

वह चिड़िया तिनका-तिनका सहेज कर लाती और बड़ी लगन से अपना घोंसला बनाती। कुछ दिनों बाद उसके नन्हें घोंसले में तीन-चार बच्चे चहचहाने लगे। अब चिड़िया बहुत खोजबीन कर दाने लाती और अपने बच्चों को चुगाती। एक दिन उसे एक सरकारी गोडाउन दिख गया जो अनाज के बोरों से भरा पड़ा था। वह डरते-डरते वहाँ पहुँची और दाना चोंच में भर कर उड़ गयी। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था। निडर होकर चोंच भर-भरकर दाने ले जाती। बच्चे जितना खा सकते उतना खाते, शेष वहीं एक कोने में इकट्ठा होने लगा। अब चिड़िया और उसके बच्चे काफी हष्ट-पुष्ट हो गए थे। दानों का ढेर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था। नन्हा घोंसला इतना बोझ सह न सका और एक दिन भरभरा कर गिर पड़ा। 

☆ सम भाव ☆ 

बस की प्रतीक्षा करते हुए पति-पत्नी इधर-उधर देख रहे थे। एक सुंदर लड़की भी वहीं आकर खड़ी हो गयी। कुछ देर पत्नी उसे एकटक देखती रही फिर पति की ओर मुड़ी, वे एकटक लड़की को देख रहे थे। अपने आठ वर्षीय बेटे पर नजर गयी तो वह भी कौतुक से उसी लड़की को देख रहा था।

© डॉ. हंसा दीप

संपर्क – Dr. Hansa Deep, 1512-17 Anndale Drive, North York, Toronto, ON – M2N2W7 Canada

दूरभाष – 001 647 213 1817

[email protected]

 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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