॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (1-5) ॥ ☆

 

राज्य पाकर रघु पिता से और भी चमके तथा

शाम को पा तेज रवि से अग्नि हो शोभित यथा ॥ 1 ॥

 

सुन के उस को बना राजा बाद नृपति दिलीप के

द्धेष थे जिनके दिलों में और भी जलने लगे ॥ 2 ॥

 

इंद्रध्वज सम देख ऊपर उठे रघु उत्थान को

प्रजा सब प्रभुदित हुई थी पा रही अनंद जो ॥ 3 ॥

 

द्विरदगामी रघु ने दोनों पर किया अधिकार सम

राजसिंहासन पै जितना, श्शत्रुओं पर भी न कम ॥ 4 ॥

 

दे स्वयं की छत्र छाया पद्या रह अदृश्य ही

रघु की श्शासन व्यवस्था में साथ नित उसके रही ॥ 5 ॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments