॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #3 (66-70) ॥ ☆

 

अब यज्ञशाला में मेरे पिताजी शिवरूप से हैं, सुने दत तब से

कि वरदान दे सुफल उनको किया आपने जो वहाँ प्रतीक्षा रत है कब से ॥ 66॥

 

सुन रघु की अभिलाषा -कहकर ‘‘तथा हो” मातलि से बोले कि रथ को बढ़ाओ-

औं रघु भी घोड़ा न पा किन्तु वर पा कहा खुद से-‘‘अब यज्ञ मंडप को जाओ। 67

 

रघु आगमन पूर्व सुन वृत सारा, देवेन्द्र के दूत से महीपति ने

रघु नन्दिनी वरद बेटे को छाती से चिपका किया खुश, सुखी भूपति ने ॥ 68॥

 

इस विधि से सौवें यजन का सुफल पा, राजा ने सोपान सुख के बनाये

जनप्रिय दिलीप चक्रवर्ती ने मानो कि देवेन्द्र से स्वर्ग -सुख – लाभ पाये ॥ 69॥

 

फिर साधना युक्त जीवन बिताने को जात योवन ले मुदित साथ पली

दिया छत्र – चामर युवा पुत्र रघु को, निभाते हुये रीति इश्वाकु कल की ॥ 70॥

 

तृतीय सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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