ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–12  

e-abhivyakti  में  नित नए लेखकों एवं पाठकों के जुड़ने  से मुझे  इस साइट पर और अधिक परिश्रम कर इसे तकनीकी एवं साहित्यिक दृष्टि से पठनीय बनाने के लिए असीम ऊर्जा प्रदान करते हैं। मैंने प्रारम्भ से ही साहित्य के स्तर पर किसी भी प्रकार का समझौता स्वीकार नहीं किया। इस साइट के माध्यम से और नए प्रयोग करने की संभावनाएं प्रबल हैं और उन्हें समय-समय पर आप सबके सहयोग से करने के लिए मैं कृतसंकल्प हूँ।

पहला प्रयोग हिन्दी, मराठी एवं अङ्ग्रेज़ी साहित्य को एक मंच पर लाने का सफल प्रयोग किया।  संभवतः यह प्रथम वेबसाइट है जिसके माध्यम से इन तीनों भाषाओं के उन्नत साहित्य को आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं।

एक व्हाट्सएप्प ग्रुप www.e-abhivyakti.com भी बना रहा हूँ जिसके माध्यम से आपको प्रतिदिन प्रकाशित रचनाओं की जानकारी मिल सकेगी। हाँ, आप इस ग्रुप में कुछ पोस्ट नहीं कर पाएंगे। इसके लिए आपको अपनी रचनाएँ एवं संवाद मेरे व्यक्तिगत व्हाट्सएप्प नंबर पर ही पोस्ट करना होगा अन्यथा आपकी पोस्ट तो लोग व्हाट्सएप्प पर ही पढ़ लेंगे और प्रकाशित रचनाओं का आनंद लेने से सभी वंचित रह जाएंगे। और मुझे प्रत्येक लेखक को प्रकाशित रचनाओं की अलग से सूचित करने की आवश्यकता नहीं होगी। आशा है आप मेरी बात से सहमत होंगे।

निश्चित ही स्वस्थ लेखन एवं पठनीयता अभी  भी जीवित है और यह वेबसाइट इसका जीता जागता प्रमाण है। इस स्नेह के लिए मैं आप सबका हृदय से आभारी हूँ।

यह सत्य है कि प्रकाशित पुस्तकें अवश्य तकनीकी दृष्टि से उत्कृष्ट होती जा रही हैं किन्तु, उसको पढ़ने वाले ढूंढते नहीं मिल रहे हैं। प्रिंट ऑन डिमांड (POD) प्रक्रिया ने इस दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाए हैं। साथ ही मुद्रित संस्करणों की जगह ई-बुक्स ने ले लिया है। यह निश्चित ही नवीनतम तकनीकों में एक अग्रणी कदम है किन्तु, मेरी समवयस्क पीढ़ी एवं वरिष्ठतम पीढ़ी के कई सदस्य इस विधा से अनभिज्ञ हैं। इन सबके बाद सोशल मीडिया ने कई कट-पेस्ट साहित्यकारों को जन्म दे दिया है। कई बार तो उनकी प्रतिभा एवं ज्ञान के असीम भंडार को देखकर दाँतो तले उँगलियाँ दबानी पड़ती है।

इस संदर्भ में मुझे मेरी गजल की दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

अब ना किताबघर रहे, ना किताबें,ना ही उनको पढ़ने वाला कोई

सोशल साइट्स पर कॉपी पेस्ट कर सब ज्ञान बाँट रहे हैं मुझको । 

आज बस इतना ही ।

हेमन्त बावनकर

28 मार्च 2019

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