सुश्री अनीता श्रीवास्तव

☆ कथा कहानी ☆ अथ मुर्दा सम्वाद ☆ सुश्री अनीता श्रीवास्तव ☆

कई घंटे हो गए थे. साथ आए लोग ज़मीन पर अर्थी रख किनारे जा कर सुस्ताने लगे थे. एक मुर्दा आगे वाले को लक्ष्य कर बुदबुदाया – कितना समय और लगेगा. उसे कोई जवाब न मिला. मन तो किया जम कर फटकार लगा दे- आखिर हमें इतना इंतज़ार क्यों कराया जा रहा है? हम यहाँ न तो पार्टी के टिकट के लिए खड़े हैं न कोविड वैक्सीन के लिए , फिर देर क्यों? तभी उसे याद आया वह मुर्दा है. उसे मुर्दों की मर्यादा का पालन करना चाहिए और चुप रहना चाहिए. वो एक बार गलती कर चुका है. ये गलती उसने जिंदा रहते की थी तब उसका धर्म बोलना था मगर वो चुप रहा लिहाजा जीतेजी मुर्दों में  गिना गया. जीवितों में उसकी मात्र हेड कॉउंटिंग हुई. उसे याद है पडौस में एक मनचला किसी की नई नवेली दुल्हन पर नज़र रखता था. उसकी अंतरात्मा  ने उसे ‘पिंच’ किया – जा, जा कर उस भोले- भाले इंसान को बता दे कि इस नए दोस्त का घर में आना बंद कराए. वो अपनी स्मार्ट बीवी को भी पड़ोसन को समझाने के काम में लगा सकता था. मगर उसने ऐसा कुछ नहीं किया और चुपचाप कांड होने दिया. रिश्वत देने में उसे कभी दिक्कत नहीं हुई बल्कि उसका खयाल था पैसा देने से काम जल्दी होता है तो इसमें हर्ज़ क्या? समूचा तंत्र उसके लिए सुविधाजनक होना चाहिए. बस. उसने अपनी बोलने की शक्ति और अवसर को अपनी स्वयं की सुरक्षा में लगा दिया. इतना सब उसने मन ही मन बड़बड़ाया था पर भावावेग में कहीं- कहीं उसका स्वर पंचम हो गया l इससे पडौसी मुर्दे की निद्रा में विघ्न पड़ा.

वह थोड़ा कसमसाया. फिर बोला शट अप. अभी हमारे लिए लकड़ी का इंतज़ाम हो रहा है. लोग कितने परेशान हैं. ट्राई टू अंडरस्टैंड. पहले वाला अब खुल कर बोल सकता था क्योंकि मर्यादा का उल्लंघन दूसरी ओर से हुआ था. वह तो सिर्फ रिएक्ट कर रहा था. बोला- तू मरा कैसे? नकली रेमडेसीवीर से – दूसरे ने तटस्थ भाव से कहा. तब तक तीसरा बोल पड़ा – नकली था तो क्या.. कम से कम मिला तो. मुझे देखो न नकली  मिला न असली.

पहला- क्यों?

तीसरा- चालीस हजार में मिल रहा था. फोन कर के बीवी को समझाया. ऑटो चला कर चालीस हज़ार बड़ी मुश्किल से जोड़ा है. मेरा बीमा भी है. निकलने दे. कहकर वो भूतिया हँसी हँसा.

अब तक दूसरा मुर्दा उठ कर बैठ गया था. वह अपेक्षाकृत लम्बा जीवन मृत्यु लोक में बिता आया था इसलिए अच्छी खासी समझ और अनुभव रखता था. उसने कुछ श्लोक गा कर सुनाए जिनका आशय सिर्फ यह बताना था कि उसे धर्म- अधर्म की समझ है. उसने प्रवचन सा किया- सौ बरस में एक बार ऐसी विपदा किसी न किसी बहाने से आती है, शास्त्र में लिखा है. उन्होंने मुँह खोला ही था कि तीसरा कफन फेंक कर बोला –  ज्ञान नहीं पेलने का दादू. आखिर धर्मात्मा हो कर भी तुझे कोरोना हुआ न! नकली इंजेक्शन से तड़प कर मरा न! इस बार थोड़ी दूर सोए मुर्दे में हरकत हुई. बोलने वालों में ये चौथा था. बोला- कोरोना ने एक बड़ा मार्केट खड़ा कर दिया है. सारे बातूनी मुर्दे चौकन्ने हो कर उसका मुख देखने लगे. उसे अपनी वेल्यू समझ में आई तो बकायदा लेक्चर के मूड में आ गया- अब देखो कोरोना से बचाव के लिए मास्क और सेनेटाइज़र तो चाहिए ही लेकिन इसके अलावा भी तरह तरह के काढ़े और घरेलू दवाइयाँ हैं. क्योंकि कोरोना की कोई दवा नहीं है इसलिए ये सब दवाएँ हैं. अगर आप भी कुछ जानते हैं- घरेलू नुस्खे से ले कर टोना टोटका तक, तो उतरिये बाज़ार में. आपके लिए भी सम्भावनाएँ हैं.  कुछ नहीं तो मंत्रोच्चार ही कर लें. व्यायाम सिखाएं. वीडियो बना कर यूट्यूब पर डालें. पैसा कमाएँ. नाम कमाएँ.

एक मुर्दा तैश में आ गया, बोला – कोई नाक में तेल डाल रहा है, कोई नीबू निचोड़ रहा है, कोई प्याज खाने को बोलता है,  किसीने कहा सेंधा नमक जलाओ, कहते – कहते वो तन कर बैठ गया. अब जो हो सो हो. मुर्दा बोल उठा. जिंदा लोगों का दुःख और मौकापरस्ती उससे सहन नहीं हो रही थी. पहले वाले ने अबके बहुत देर बाद कुछ पूछा-  तू क्या हर्ट अटैक से मरा?

हाँ. मगर तूने कैसे जाना- चौथा अब आपे में लौट आया था.

पहला- तू बात करते- करते सेंटी हो गया, इसीसे जाना.  तू बातों को दिल पर ले लेता है. अपने इसी स्वभाव के चलते तू दिल का रोगी बना.

 

© सुश्री अनीता श्रीवास्तव

टीकमगढ़

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Anita shrivastava

सादर आभार आदरणीय संपादक मण्डल

Shyam Khaparde

गजब की रचना, बधाई