श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –अनुभव ?

ज़मीन से कुछ ऊपर

कदम उठाए चला था,

आसमान को मुट्ठी में

कैद करने का इरादा था,

 

अचानक-

ज़मीन ही खिसक गई

ऊँचाई भी फिसल गई,

 

आसमान व्यंग से

मुझ पर हँस रहा था,

अपनी जग-हँसाई

मैं भी अनुभव कर रहा था,

 

किंतु अब फिर से

प्रयासों में जुटा हूँ,

इतनी सी मुट्ठी,

उतना बड़ा आसमान है,

 

पर इस बार आसमान

भयभीत नज़र आता है,

अनुभव जीवन को

नये मार्ग दिखाता है,

जानता हूँ, अब

विजय सुनिश्चित है

क्योंकि

इस बार मेरे कदम

ज़मीन से ऊपर नहीं

बल्कि ज़मीन पर हैं।

 

©  संजय भारद्वाज

( कविता संग्रह ‘योंही’ से )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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अलका अग्रवाल

बहुत सही कहा- अनुभव मनुष्य को परिपक्व बना देता है।पाँव यदि जमीन पर हैं तो जीत सुनिश्चित हो जाती है।

अमरेन्द्र नारायण

सही सोच और आत्मविश्वास की सहज अभिव्यक्ति।
बधाई।

Rita Singh

मनुष्य जब अहंकार से दूर रहकर अपने कार्य करता है तो विजय और सफलता का अधिकारी होता है।