श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “जुगाड़ की जननी”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 46 – जुगाड़ की जननी ☆

इसी जद्दोजहद में जीवन बीता जा रहा है कि सम्मान कैसे मिले। सड़क पर लगे हुए बैनर मुँह चिढ़ाते हैं। कि देखो जिनके साथ तुम उठना – बैठना पसंद नहीं करते थे वो कैसे यहाँ बैठकर  तुम्हें घूर रहे हैं। शहर के सारे नेता अपना कार्य छोड़ कर इस बैनर में बैठकर आने – जाने वालों की निगरानी कर रहे हैं।

विज्ञापनों की भरमार के बहुत से होर्डिंग चौराहों की शोभा बढ़ाते हैं। हीरो – हीरोइन वाले पोस्टर अब कोई नहीं देखता।

कुछ पोस्टर, बैनर, प्रेरणादायक होते हैं, जिन्हें देखकर कार्य करने की इच्छा जाग्रत होती है। जब आपकी फ़ोटो और नाम उसमें अंकित हो तो आपमें अहंकार का भाव अनायस ही उत्पन्न हो जाता है। परंतु यदि आप बैनर से नदारत हैं तब तो मानो ऐसा लगता है कि किसी ने सोए हुए शेर को जगा दिया हो। आप दहाड़ते हुए अपनी माँद से निकल कर पूरे परिवेश को अशांत कर देते हैं।

आखिर नए छोकरों की इतनी हिम्मत कि मुझे नजरअंदाज करे, तभी छठी इन्द्रिय कह उठती है, जरूर ये साजिश किसी ऊँचे स्तर पर हुई है। आखिर मेरे व्यक्तित्व की चकाचौंध को कौन नहीं जानता। मेरे प्रभाव को कम करने की हिम्मत करने वाले को राह से बेराह करना ही होगा। कैसे प्रभाव बढ़ाया जाए ये चिंतन ही नए कार्यों की रूप रेखा तैयार कर देता है। आवश्यकता ही अविष्कार जी जननी है, लगता है ये कथन ऐसे ही मौकों के लिए बनाया गया है। बस अब शुरुआत होती है अपनी अवश्यकता को सोचने और समझने की। यदि व्यक्ति बुद्धिमान है तो जोड़- तोड़ के सैकड़ों उपाय ढूढ़ते हुई आखिर में, सम्मान पाने का अविष्कार कर ही लेता है।

मन ही मुस्कुराते हुए वो भगवान धन्यवाद कहता है। और सोचता है अच्छा ही हुआ जो पोस्टर के कोने तक में जगह नहीं मिली। अब मैं अपना व्यक्तिगत पोस्टर बनवाउंगा और इन सारे लोगों से प्रचार – प्रसार करवाऊंगा, बड़े आए मुझे रास्ते से हटाने वाले।

अब तो जुगाड़ूराम का डंका चहुँओर बजने लगा, हर बार कोई नई स्कीम लॉंच करते और पोस्टर पर चिपके हुए मुस्कान बिखरते।  उन्हें वही फीलिंग होती मानो वे सरकार बदलने का माद्दा रखते हों, जैसे छोटे क्षेत्रीय दल या निर्दलीय विधायक ही, गठबंधन सरकार को अपने काबू में रखते हैं। सरकार बदलने की शुरुआत छोटे स्तर से ही शुरू होती है। कहते हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता पर ये क्या? यहाँ तो थोथा चना बजे घना भी घनघना उठता है,और अपने लिए एक कुर्सी का जुगाड़ करके ही मानता है। इस चक्कर में देशवासियों का भले ही घनचक्कर बन जाए पर वे तो सत्ता की बागडोर अकेले ही लेकर चलेंगे। और टुकड़े- टुकड़े के लिए जनता के हितों का भी टुकड़ा करने से नहीं हिचकेंगे।

तभी अंतरात्मा से आवाज आती है कि हर युग में कर्म ही प्रमुख रहा है, आप की पूछ – परख यदि कम हो रही है तो इसका अर्थ है आपकी उपयोगिता नहीं बची है। आप कार्य पर ध्यान दीजिए, स्वयं को समय के अनुसार अपडेट करते चलें, कोई नयी योजना पर कार्य करते हुए पुनः सफलता का परचम फहराएँ।

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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डॉ भावना शुक्ल

शानदार अभिव्यक्ति

Chhaya saxena

भावना दी, धन्यवाद