श्री अमरेन्द्र नारायण 

(ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह समय-समय पर  “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत चुनिंदा रचनाएँ पाठकों से साझा करते रहते हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। आज प्रस्तुत है श्री अमरेन्द्र नारायण जी  की एक  भावप्रवण  कविता “प्रातः वंदन”।)

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ प्रातः वंदन☆

जब प्रकाश तम के हाथों बंधक बनता

वह अंतराल तो बस विराम का आता है

ऊषा अपना सौंदर्य बिखेरती वसुधा पर

आंगन,गलियों में नवोल्लास छा जाता है।

 

आशा का जो  संदेशा ऊषा लाती है

वह ईश्वर की महिमा का पुलकित वंदन है

शुभ कर्मों से अपनी कृतज्ञता हो अर्पित

वह मानव की कर्मठता का अभिनंदन है!

 

है कहां निराशा का कोई संदेश यहां?

जीवन को उत्सव का आदर दे  जीना है

दुःख  और निराशा से लड़ने की है क्षमता

अधिकार मनुज का नहीं निशा ने छीना है!

 

यह निशा भी है सम्मान मनुज के ही श्रम का

श्रम से श्लथ मानव तन थोड़ा आराम करे

नूतन ऊर्जा से भर कर फिर इस धरती का

सम्मान करे, आशीष मांग निज काम करे।

 

इसलिये नवल उत्साह भरे प्रातःवंदन

स्वर्णिम किरणें संदेश प्रेरणा लाती हैं

चाहे कितनी भी कठिन समस्या आये पर

वह समाधान की ओर हमें ले जाती हैं।

©  श्री अमरेन्द्र नारायण 

शुभा आशर्वाद, १०५५ रिज़ रोड, साउथ सिविल लाइन्स,जबलपुर ४८२००१ मध्य प्रदेश

दूरभाष ९४२५८०७२००,ई मेल amarnar @gmail.com

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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