श्रीमद् भगवत गीता 

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18

( श्रीगीताजी का माहात्म्य )

श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः ।

सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्‌॥

 

श्रद्धावान अद्वेष हिय, सुनेगा जो भी व्यक्ति

वह भी होगा मुक्त, शुभ लोक में हो अनुरक्त ।।71।।

 

भावार्थ :  जो मनुष्य श्रद्धायुक्त और दोषदृष्टि से रहित होकर इस गीताशास्त्र का श्रवण भी करेगा, वह भी पापों से मुक्त होकर उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा॥71॥

The man also who hears this, full of faith and free from malice, he, too, liberated, shall attain to the happy worlds of those of righteous deeds.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’  

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

vivek1959@yahoo.co.in मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments