प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  इफ्तखार अहमद खान बशर  जी की पुस्तक “है हिन्दी हमारी बोली “ पर  पुस्तक चर्चा।

☆ पुस्तक चर्चा ☆ है हिन्दी हमारी बोली – इफ्तखार “बशर” ☆  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अंधेरे आकाश में जैसे बिजली कौंध कर पूरे परिवेश को प्रकाशित…कर देती है उसी तरह अपनी भाव तरंग को वाणी देकर कवि खुद अपने साथ अनेकों श्रोताओं और पाठकों को प्रफुल्लित कर देते हैं. यह कुशलता बहुतों में जन्मजात होती है.

इफ्तखार अहमद खान बशर में यह रूचि मैंने उनके छात्र जीवन में ही देखी थी यह उल्लेख अपनी पुस्तक है हिंदी हमारी बोली में प्रारंभ में ही उन्होंने किया है. अपने शासकीय सेवा काल में  विभिन्न कार्य भार  से दबे होने के कारण उनके कवि के मनोभावों ने अभिव्यक्ति कम पाई. सेवा से अवकाश पाकर उन्होंने अपनी साहित्यिक प्रवृत्ति को पुनः अपनाया और लेखन  किया, यह एक अच्छी बात है, साहित्य प्रेम की रुचि खुद को आनंद देती है. साथ ही अनेकों पाठकों को भी सुख देते हुए सुखी करती है.

अपनी पुस्तक के प्रकाशन के कुछ समय बाद उन्होंने मेरी कुछ गजलो व कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद कर पुस्तक सहित जब मुझे प्रेषित किया तो मैं आश्चर्यचकित रह गया उनकी पुस्तक में उनकी 40 गजलें, कविताएं व दोहे हैं. पुस्तक को पढ़कर मैंने उनके मनोभावों को समझने का प्रयास किया है. उनके बहुरंगी भावों को पढ़कर अच्छा लगा. कवि हृदय मनोभावों से लबरेज है. वे लिखते हैं

सूझते हैं मिसरे शायरी के मुझको

मुखड़े बहुत सारे मेरे जहन में है

पुस्तक का नाम ही कवि के मन की पवित्रता राष्ट्रप्रेम तथा मातृभाषा हिंदी के प्रति लगाव की गवाही देता है.

यह आरती की थाली है हिंदी हमारी बोली

अनुपम सुखद निराली है हिंदी हमारी बोली

 

कवि के मन में प्रकृति दर्शन की ललक दिखती है

इस दुनिया में जन्नत की अगर कोई निशानी है

ये हरियाली शाबादी फिजा की रूप रानी है

शरद पूर्णिमा की शोभा उसे आकर्षित करती है , मनमोहक लगती है उसे देख वे लिखते हैं

लो धवलता छा रही है इस गगन की नीलिमा में

है निखरती छटा शशि की इस शरद की पूर्णिमा में सामाजिक त्योहार भाईचारे और मन मिलन का संदेश देते हैं दीपावाली का त्यौहार प्राचीन काल से यही संदेश देता आ रहा है,  उन्होंने लिखा है

हुमायुं लक्ष्मी पूजा विधि विधान के साथ

करवाता था राज में दे दान खुले हाथ

सामाजिक व्यवहार चलते जाते हैं बदलाव नहीं दिखते

हुश्न के तेवर नहीं बदले जेवर बदलते जा रहे हैं

स्वार्थ पूर्ण व्यवहार बेईमानी कर्तव्य निष्ठा का अभाव भी वैसा ही चल रहा है

उनसे मुफ्त में उम्मीद क्या करें

रहनुमाई मिली जिनको कुर्सी खरीदकर

या

लोगों को तुम्हारी रोटियां सियासत की गोटियां हैं

ब्रिटिश शासकों ने बर्बरता से देश भक्तों का शिकार किया

घात की नज़दीकियों की अक्सर  फिकर है

झाड़ियों की ओट में आदिम शिकारी चल रहा है

 

अनेकों बहुरंगी भावों का गुलदस्ता उनकी यह कृति है.

आशा है भविष्य में भी कुछ और अच्छा उनसे पढ़ने को मिलेगा. गजलो का अंग्रेजी अनुवाद भी बहुत अच्छा है.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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