श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनके द्वारा स्व हरिशंकर परसाईं जी के जीवन के अंतिम इंटरव्यू के अंतिम प्रश्न का उत्तर। । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 45

☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – – – –  ☆ 

(साक्षात्कार का अन्तिम सवाल और परसाई जी का जबाब) 

जय प्रकाश पाण्डेय – अनेक महत्वपूर्ण आलोचकों के मतानुसार व्यंग्य किसी भी भाषा, समाज या समय के श्रेष्ठ लेखन का अनिवार्य गुण है जबकि एक वर्ग ऐसे लोगों का भी है जिनका मानना है कि चूंकि व्यंग्य लेखन में जीवन की संपूर्णता में चित्रित करने की क्षमता नहीं होती अत: श्रेष्ठतम व्यंग्य लेखन भी महान साहित्य की श्रेणी में परिगणित नहीं हो सकता। इस संबंध में आप क्या कहना चाहेंगे ?

हरिशंकर परसाई – सम्पूर्ण जीवन से क्या अर्थ है, सम्पूर्ण सामाजिक जीवन तो किसी महाकाव्य या किसी एक उपन्यास तक में भी नहीं आ सकता है। कई उपन्यास हों तो शायद आ भी जावे या भी पूरा न आ पाये। जीवनी उपन्यास हो तो किसी एक व्यक्ति के जीवन, नायक के जीवन का सम्पूर्ण चित्र आ जाता है। मैंने जो व्यंग्य लिखे हैं सिलसिलेवार नहीं, खण्ड खण्ड लिखा है, निबंध, कहानी, लघु उपन्यास, कालम इत्यादि और इन सब में समाज का एक तरह से सर्वेक्षण हो गया है, एक पूरे समाज का सर्वेक्षण कर लेना भी मेरा ख्याल है कि उस समाज को एक टोटलिटी में संपूर्णता से व्यंग्य के द्वारा चित्रित करना ही है, जैसे रवीन्द्रनाथ ने कोई महाकाव्य नहीं लिखा लेकिन उनकी फुटकर कविताओं में लगभग वह सभी आ गया जो किसी एक महाकाव्य में आता है, ऐसा मेरा ख्याल है और ऐसा ही मेरे लेखन में है। तो ये दावा तो नहीं कर सकता, न दोस्तोवेयस्की कर सकते हैं न बालजाक कर सकते हैं कि उनकी रचना में संपूर्ण जीवन आ गया है पर बहुत अधिक अंशों तक आ गया है। ये हम मान लेते हैं। मैंने सम्पूर्ण जीवन में लिखने के लिए कोई उपन्यास दो-चार – छह नहीं लिखे। मैंने खण्ड – खण्ड में जीवन को जहां जैसा देखा, उसको वैसा चित्रित किया,उस पर वैसा व्यंग्य किया। अब कालम के द्वारा समसामयिक घटनाओं पर वैसा कर रहा हूं। इस प्रकार समाज का पूरा सर्वेक्षण मेरे लेखन में आ जाता है, लेकिन मैं ये दावा नहीं कर सकता हूं कि जीवन की सम्पूर्णता या सामाजिक जीवन की सम्पूर्णता मेरे लेखन में आ गई है, वो नहीं आई है, और इतना पर्याप्त नहीं है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments