श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

अर्जुन उवाच

 

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्‌।

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्‌।।12।।

आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।

असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ।।13।।

अर्जुन ने कहा –

परब्रम्ह अतिपावन परमधाम गुणवान

आप निरंतर दिव्य हैं आदिदेव भगवान।।12।।

सब ऋषियों ने आपका नारद देवल व्यास

कहा यही है असित ने और स्वतः भी आप।।13।।

      

भावार्थ :  अर्जुन बोले- आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं, क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन, दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, अजन्मा और सर्वव्यापी कहते हैं। वैसे ही देवर्षि नारद तथा असित और देवल ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते हैं और आप भी मेरे प्रति कहते हैं॥12-13॥

 

Thou art the Supreme Brahman, the supreme abode (or the supreme light), the supreme purifier, the eternal, divine Person, the primeval God, unborn and omnipresent.।।12।।

 

All the sages have thus declared Thee, as also the divine sage Narada; so also Asita, Devala and Vyasa; and now Thou Thyself sayest so to me.।।13।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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