विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री कुशलेंद्र श्रीवास्तव जी के नाटक   “सरयू के तट पर ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.   श्री विवेक जी ने  आज के सन्दर्भ में धार्मिक तथ्यों पर आधारित नाटक पर लिखित  पुस्तक की  अतिसुन्दर समीक्षा लिखी है।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 24☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – नाटक –  सरयू के तट पर

पुस्तक – सरयू के तट पर (भरत मिलाप का नाट्य रूपांतरण)

लेखक – श्री कुशलेंद्र श्रीवास्तव

प्रकाशक – सुभांजली प्रकाशन, कानपुर

आई एस बी एन ९७८९३८३५३८५८४

मूल्य ३०० रु प्रथम संस्करण २०१९

☆ नाटक  – सरयू के तट पर – श्री कुशलेंद्र श्रीवास्तव–  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

भरत मिलाप का नाट्य रूपांतरण

वर्तमान समय में नाटक लेखन अपेक्षाकृत बहुत कम हो रहा है. सेल्यूलर पर्दे के कारण नाटक के दर्शक भी कम होते गये हैं. यद्यपि नाटक विधा अपनी सशक्त अभिव्यक्ति की क्षमता के चलते कला जगत में पूरी ताकत के साथ उपस्थित है. आज भी स्टेज से अनेक फिल्मी कलाकारो का जन्म होता दिखता है. ऐसे समय में नये नाटकों के  लेखन की आवश्यकता निर्विवाद है. वही भाव अन्य विधाओ की बनिस्पत जब नाटक के माध्यम से दर्शक तक पहुंचते हैं तो उनका प्रभाव दीर्घ कालिक होता है, क्योंकि नाटक के जरिये दृश्य व श्रवण संप्रेषण साथ साथ हो पाता है.

कुशलेंद्र श्रीवास्तव साहित्य जगत का जाना पहचाना नाम है. उम्र के साठवें दशक की आयु में ही कविताओ, कहानियों, व्यंग्य और नाटक की लगभग २५ स्वतंत्र किताबें प्रकाशित होना बड़ी बात है. उन्हें अनेक सम्मान मिल चुके हैं.

भरत मिलाप का प्रसंग राम चरित मानस का अत्यंत मनोहारी हिस्सा है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कथा को प्रासंगिक बनाते हुये कुशलेंद्र जी ने बड़ी कुशलता से यह नाट्य रूपांतर किया है. जब हम पुस्तक पढ़ते हैं तो केवल संवाद पठन से अभिव्यक्त विषय का आनंद नही लिया जा सकता, प्रत्येक दृश्य की पूर्व पीठिका को पढ़ना और समझना कथा का आनंद बढ़ाता है. नाटक की दृष्टि से यह एक लम्बा नाटक है. जब इसका मंचन हो, निर्देश तथा पात्रों से चर्चा हो, तभी किताब के नाटकीय पक्ष पर बेहतर टिप्पणी की जा सकती है.सुभाष चंद्रा जी ने किताब की भूमिका में ठीक ही लिखा है कि इस नाटक से भरत के चरित्र का दर्शन होता है.  काल्पनिक दर्शक बनकर किताब पढ़ने के बाद मैं यही कहूंगा कि बहुत उत्तम संवाद रचे हैं लेखक ने. स्वयं को राम के युग में प्रतिस्थापित कर आज के परिवेश को जोड़कर अपने मन की उहापोह को भी पात्रों के जरिये कुशलता से अभिव्यक्त किया है कुशलेंद्र जी ने. उनसे रामकथा पर और भी नाटको की उम्मीद करता हूं. शुभकामना कि जल्दी ही कोई नाट्य दल इस नाटक का मंचन करे.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments