श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “सत्संगति की धारा…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 248 ☆ सत्संगति की धारा… ☆
एक जैसी विचारधारा के लोग बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। जब व्यक्ति एक बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ता है तो बहुत से मददगार मिलते जाते हैं। इस दौरान कई बार ऐसा लगता है कि राह कठिन है पर तभी कुछ ऐसे घटनाक्रम होते हैं जिनसे सब कुछ आसान हो जाता है।
कहा भी गया है चरैवेति चरैवेति अर्थात चलते रहो चलते रहो। एक न एक दिन मुकाम अवश्य मिलेगा। जो दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढ लेते ऐसे लोग हमेशा प्रसन्नचित नज़र आते हैं, उन्हें देखकर लगता ही नहीं कि इनको कभी कोई दुःख छू सकता है।
मीठे वचनों के प्रयोगों से आप सबके प्रिय बन सकते हैं। यदि दूसरों के हित हेतु कभी कड़वे बोल बोलने भी पड़ जाएँ तो भी वे सुनने वालों को मधुर लगेंगे क्योंकि उनका उद्देश्य सर्वजन हिताय है।
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छोड़िए- छोड़िए हर नशा छोड़िए।
जोड़िए- जोड़िए भाव को जोड़िए।।
प्रीत सच्ची सही अब निभानी सदा।
मोड़िए- मोड़िए ये कदम मोड़िए।।
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जब इन सबसे विजयी होकर कर्मभूमि पर उतरो तभी भ्रष्टाचार के दर्शन हो जाते हैं,कोई कार्य इसके बिना पूरा नहीं होता। हर व्यक्ति इसी की दुहाई देता हुआ मिल जायेगा कि ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार छाया हुआ है। महंगाई तो इसके साथ अमरबेल की तरह बढ़ रही है।
आवश्यकता है कि हम लोग जागरूक हों, अपने कर्तव्यों को समझें।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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