श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है नई दुनिया समूह की प्रस्तुति “‘म से माँ’ …” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 182 ☆
☆ “‘म से माँ’ …” – नई दुनिया समूह की प्रस्तुति ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक चर्चा
पुस्तक – म से माँ…”
नई दुनिया समूह की प्रस्तुति
☆ ‘म से माँ’ – एक भावनात्मक श्रद्धांजलि – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
भारतीय मीडिया जगत में जागरण समूह केवल समाचार प्रसारक नहीं, सांस्कृतिक संवाहक भी है। सामाजिक सरोकारों को जनमंच तक पहुंचाने की अपनी जिम्मेदारी वे पूरे समर्पण से उठाते रहे हैं। वे केवल व्यवसायिक दृष्टिकोण से ऊपर, अखबार के माध्यम से पाठकों के परिवार के सदस्य वाली भूमिका निभाते नजर आते हैं।
माँ ईश्वर का प्रतिरूप है, प्रकृति के सिवाय केवल मां में नव सृजन की क्षमता ईश्वर ने दी है।
माँ का स्नेह निस्वार्थ, त्याग अद्वितीय और आशीर्वाद अमूल्य होता है। वह केवल जन्म नहीं देती, संस्कार भी देती है। माँ हर दुःख की ढाल, हर सुख की मुस्कान है। जीवन की पहली गुरु, पहला शब्द, पहला स्पर्श, सब कुछ माँ से ही प्रारंभ होता है। इसी मां के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए दुनियां भर में मदर्स डे मनाया जाता है।
‘म से माँ’ नई दुनिया समूह के पाठकों के उसी अनुभव का सजीव चित्रण है। श्रद्धा, स्मृति और संवेदना को टेबल बुक के स्वरूप में साकार रूप देकर अदभुत कार्य किया गया है।
एक्जिक्यूटिव प्रेसिडेंट देवेश गुप्ता ने उनके संदेश में माँ की सार्वभौमिकता का सम्मान व्यक्त करते हुए उन्होंने माँ की ममता को संस्कृति, भाषा, और परंपरा से जोड़ते हुए लिखा है कि “माँ केवल नाम नहीं, भावना है”। यह पुस्तक उनके लिए एक माध्यम है उस ऋण को चुकाने का, जो हम सभी माताओं के प्रति संजोए हुए हैं, किंतु शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते। सीईओ संजय शुक्ला ने माँ को एक सम्पूर्ण संस्था लिखा है। उन्होंने ‘माँ’ को भारतीय मानसिकता की आत्मा बताया है। पुस्तक की प्रस्तावना नरेश पांडे, हेड ऑपरेशंस ने लिखी है वे लिखते हैं मां आस्था है।
नरेश पांडे जी ने प्रस्तावना को एक सजीव स्मृति चित्र की तरह लिखा है, जिसमें माँ किसी कल्पना या चित्र का नाम नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक निर्णय के पीछे की मौन उपस्थिति है।
वे स्पष्ट करते हैं कि इस संग्रह में सम्मिलित रचनाएँ किसी एक माँ के लिए नहीं, हर माँ के लिए एक सामूहिक नमन हैं। वह माँ जो कभी स्वयं की भूमिका को नहीं गिनती, बस निभाती रहती है।
संग्रह में स्वयं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, अध्यक्ष विधान सभा नरेंद्र सिंह तोमर, अनूप जलोटा, कई प्रशासनिक अधिकारी, अनेक लेखक, लेखिकाएं, पाठकों ने संस्मरण, लघुकथा, काव्य विधाओं में अपने विचार साझा किए हैं।
सरिता जैन शशि ने उनके संस्मरण में जैविक माँ के साथ-साथ उन स्त्रियों को माँ के समकक्ष स्थान दिया है, जो ममत्व और त्याग की भूमिका निभाती हैं।
भाभी माँ का वात्सल्य, उनका प्रतीक्षा करना, और गौरैयों के लिए दाना-पानी रखना – यह सब भारतीय संयुक्त परिवार की कोमलतम झांकी प्रस्तुत करता है।
काव्य में “हर दिन माँ का दिन”, गौरव बंग ने माँ को ईश्वर से भी पहले स्थान दिया है। “हर कोई कह रहा है आज माँ का दिन है, पर कोई ये बताए, वो कौन सा दिन है, जो माँ के बिन होता है!!” यह पंक्ति माँ के निरंतर, अनवरत, अज्ञात सेवा भाव को रेखांकित करती है। रूपकों का प्रयोग जैसे ‘तपती गर्मी में शीतलता’, माँ के वात्सल्य को संपूर्ण प्राकृतिक अनुकरणीयता से जोड़ता है। “अहसास है”, नंदकिशोर पाटीदार की रचना माँ को शब्दों से परे एक ‘अनुभव’ के रूप में परिभाषित करती है। माँ के डांट और दुलार दोनों को पूरक मानते हुए वे माँ के रोम-रोम में अमरत्व प्रतिपादित करते हैं। अत्यंत भावुक और व्यक्तिगत होते हुए भी हर पाठक के अपने जीवन से जुड़ती अभिव्यक्ति है।
माँ के आँचल को दुनिया से बड़ा बताने में एक विशिष्ट आत्मीयता है।
“गॉड हैल्प्स दोज हू हैल्प देमसेल्व्ज” संस्मरण में विवेक रंजन श्रीवास्तव ने किसी कथा की तरह आरंभ कर एक दार्शनिक विचार साझा किया है। माँ को केवल परिवार नहीं, समाज और राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा बताते हुए वे माँ के आदर्शों को जीवन के प्रत्येक निर्णय में लागू करते हैं। ‘चदरिया जस की तस धर दी’ जैसी भाषा माँ की विदाई को आध्यात्मिक विस्तार देती है। यह रचना भाव, भाषा और विचार तीनों का उत्तम संगम है।
इस टेबल बुक की हर रचना एक दूसरे से अधिक भाव प्रवण है।
“म से माँ” पुस्तक कोई संकलन भर नहीं, मनोहारी शाब्दिक आभार यात्रा है। लंबे समय तक आपकी टेबल पर यह बनी रहेगी और माँ के उस मौन योगदान की याद ताजा करेगी जिसे हमने कभी ठीक से गिना ही नहीं। इस पुस्तक में शामिल कविताएँ और संस्मरण न केवल भावुक करते हैं, बल्कि पाठक को अपनी माँ के बारे में कुछ लिखने, कुछ कहने के लिए प्रेरित भी करते हैं।
माँ के जीवन की विविध छवियों – डॉक्टर बनाने वाली माँ, ओटले पर खड़ी प्रतीक्षा करती माँ, गौरैया को दाना खिलाने वाली माँ, यशोदा जैसी भाभी माँ इन सबका चित्रण पुस्तक को भारतीय संस्कृति की जीवंत गाथा बना देता है।
जागरण समूह का यह प्रयास न केवल साहित्यिक है, बल्कि म, मां के सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनर्स्मरण का माध्यम भी है।
माँ को शब्दों में पिरोने का यह अद्भुत यत्न, स्वयं माँ को समर्पित है। इस अनूठे साहित्यिक प्रयास की व्यापक चर्चा होनी चाहिए। खरीदिए और पढ़िए।
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈