आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है – पूर्णिका – आँख ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 238 ☆
☆ पूर्णिका – आँख ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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आँख खुली तो गूँजे सोहर
आँख मुँदी रोया घर-बाहर
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आँख मिली सौ सपने देखे
आँख झुकी था दिलकश मंजर
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आँख दिखा धमकाया चुप रह
आँख उठा फुसलाया फिर फिर
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आँख फेर लीं जब आँखों ने
आँख हुईं नम, दिल था बेघर
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आँख फूल बन महकाएँ जग
आँख शूल बन चुभतीं खंजर
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आँख तरेरें आँखें सहमें
आँख चुराएँ हेरें बाहर
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आँख कमसिनी के सौ किस्से
आँख केसरी करती जौहर
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आँख कैदखाने में कैदी
आँख मिली बैठी पहरे पर
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आँख बन गई नज़र आँख की
आँख रख रही नज़र आँख पर
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आँख बुने सन्नाटा इस पल
आँख बने उस पल जलसा घर
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आँख पवन नभ भू पाखी पर
आँख सलिल सरिता सर निर्झर
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२.६.२०२५
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