श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना उम्मीद जाग्रत रखें। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 246 ☆ उम्मीद जाग्रत रखें

हरियाली हो हर मौसम में,

रंग बिरंगी क्यारी हो।

बागों की डाली- डाली भी

अनुपम अद्भुत न्यारी हो।।

*

संस्कार अरु संस्कृतियों का

संगम प्यारा- प्यारा है।

आओ मिल सब सृजन करेंगे

ये संसार हमारा है।।

संसार रूपी बगिया में फूलों की तरह खिलना, महकना और मुस्कुराहट बिखेरने आना चाहिए। जो हो रहा है उसे स्वीकार कर आगे बढ़ते जाना, कदम से कदम मिलाते हुए जो भी निरंतर चला है उसे न केवल अपनों का साथ मिला है वरन प्रकृति ने भी उसके लिए अपने दोनों हाथ खोल दिये हैं। कहते हैं जो सोचो वो मिलेगा, बस सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ ऊर्जान्वित रहिए। यही सब तो आस्था, संस्कार, श्रद्धा, विश्वास व संस्कृति सिखाती है। बस मनोबल कम नहीं होना चाहिए। उम्मीद की डोर थामे अच्छा सोचें अच्छा करें।

गंगा की बहती धारा से,

मन पावन हो जाता है।

सुख -दुख सब इसमें तजकर के,

मनुज मनुज बन पाता है।।

*

अहंकार परित्याग करें तो,

चमन चमन बन जायेगा।

ऋषि मुनि सारे हवन करेंगे

स्वर्ग धरा पर आयेगा।।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, chhayasaxena2508@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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