श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 135 ☆ देश-परदेश – दिल्ली 6 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली 6 के नाम से फिल्म आई थी, खूब चली थी। दिल्ली के दिल चांदनी चौक के आस पास के क्षेत्र को दिल्ली 6 कहा जाता हैं।

स्वतंत्रता के बाद जब शहर महानगर बन रहे थे, तब वहां ऐसे बड़े शहरों को 1 अंक से नंबर आरंभ दिए गए थे, शहर के क्षेत्र को अंक देकर विभाजित किया गया था। इसके बाद छः अंक का पिन कोड आरंभ हुआ, जो विद्यमान में भी कार्यरत हैं।

पुराने लोग तो कभी भी पिन कोड के महत्व को समझ नहीं पाए थे। कौन छे नंबर याद रखें। उनका ये मानना था, कि पत्र को प्राप्त करने वाला व्यक्ति बहुत जानी मानी हस्ती है, इसलिए मिल जाता हैं। पूरा शहर उसको जानता है।

चार दशक पूर्व हमारे एक पत्र पर नाम के साथ स्टेट बैंक और शहर का नाम लिख कर प्रेषित किया था। पोस्टमैन ने भी उसको समय से हमारे पास पहुंचा दिया था। अब समय बदल गया है, बहुत सारे लोग तो पड़ोसी का नाम तक भी नहीं जानते हैं।

वर्तमान में पोस्टल सेवाओं की उपयोगिता भी कम हो गई है। मोबाइल और ईमेल जैसी सुविधा आ चुकी हैं। लॉजिस्टिक और ई कॉमर्स में समय का महत्व बहुत है, अधूरे पत्ते से उनको बहुत हानि हो रही हैं। इसलिए अब 14 डिजिट का डिजिपिन व्यवस्था लागू की जा रही हैं। समय की पुकार जो हैं। देश की आधी से अधिक जनसंख्या अभी छह अंक के पिन कोड तक को याद नहीं कर पाई है, अब ये 14 अंक कैसे याद रखेगी, ये तो आने वाला समय ही बता पाएगा।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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