श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “पुछ गया सिंदूर?” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 105 ☆ पुछ गया सिंदूर ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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घायल हो गया मन
बन गया है ज़ख़्म अब नासूर
पुछ गया सिंदूर ।
कैंडलों की रोशनी
मुरझाए से चेहरे
घोषणाओं में छिपे
गुपचुप राज से गहरे
हो गया पत्थर भी चकनाचूर ।
पुछ गया सिंदूर।
खो गई इंसानियत
क्या अब, युद्ध केवल हल
संधियों पर है टिका
बस यातनाओं का महल
हो गए हैं पराजित दस्तूर।
पुछ गया सिंदूर ।
हुए समझौते रुकी
थम गया सेना का जुनून
फिर पनपने का मिला
आतंकियों को क्या सुकून
क्या हुई संवेदना मजबूर
पुछ गया सिंदूर ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈