स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं – सुमित्र के दोहे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 238 – सुमित्र के दोहे…
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आंसू सूखे आंख के, सूख रही है देह।
इन यादों का क्या करूं, होती नहीं सदेह।।
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याद तुम्हारी कुसुम -सी, खिली बिछी तत्काल ।
या समुद्र के गर्भ में, बिखरी मुक्ता माल।।
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घन विद्युत सी याद है, देती कौंध उजास।
कभी-कभी ऐसा लगे, करती है परिहास।
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सूना सूना घर मगर, दिखे नहीं अवसाद।
इसमें क्या अचरज भला, महक रही है याद।।
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मास दिवस या वर्ष सब, होते गई व्यतीत।
किंतु याद की कोख में, है जीवन अतीत।।
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© डॉ. राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
सादर नमन