श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मिट्टी…” ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 220 ☆
☆ # “मिट्टी…” # ☆
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सांसों के स्पंदन में
चंचल मन में
मिट्टी से मोह
मिट्टी से बिछोह
हर कोई भूल जाता है
भ्रमित हो जाता है
बस उसे याद रहता है
पद प्रतिष्ठा और पैसा
मान सम्मान शान
अहंकार अभिमान गुमान
अपने सपने बेगाने
सचल अचल महल
यह सब-
यहीं पर रह जाते हैं
साथ नहीं जाते हैं
लेकिन
हम सदा
इन्हीं में डूबे रहते हैं
मुखौटे में छुपे रहते हैं
अपने आप को
बलवान कहते हैं
खुद को
श्रेष्ठ इंसान कहते हैं
आखिरी पड़ाव पर
थक हारकर
संसार मिथ्या लगता है
वैराग्य का भाव जगता है
जब अंतिम सांस लेते हैं
काया को त्याग देते हैं
एक अदृश्य ज्योति
काया को छोड़ उड़ जाती है
विशाल गगन में
कहीं खो जाती है
मिट्टी की काया
मिट्टी में मिल जाती है
अवशेष बस
मिट्टी ही रह जाती है /
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© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
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