आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है – नव आविष्कृत सॉनेट…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 237 ☆
☆ नव आविष्कृत सॉनेट… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
(मीटर- क ख ग घ् क ख ग घ् च छ ज च छ)
☆
कब कहाँ कैसे किया क्यों कह कहेगा कौन?
अनजान अब अज्ञानता से चाहता है मुक्ति।
आत्म फिर परमात्म से हो चाहता संयुक्ति।।
प्रश्न पूछे निरंतर उत्तर मिला बस मौन।।
नर्मदा में जो सलिल वह ही समेटे दौन।
यहाँ भी पुजती, वहाँ भी पुज रही है शक्ति।
काम का प्राबल्य क्यों गायब अकामा भक्ति।।
दादियों को छेड़ते पोते, भटकता यौन।।
०
लक्ष्य चुनकर पंथ पर पग रख बढ़ो पग-पग
गिर उठो सँभलो, नहीं तुम कोशिशें छोड़ो
नापता जो नापने दो बनाए नव माप।
कहो हर अटकाव से, भटकाव से मत ठग
हौसलों को दे चुनौती जो उसे तोड़ो
आप अपने आप जाता आप ही में व्याप।।
☆
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२९.५.२०२५
संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,
चलभाष: ९४२५१८३२४४ ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈