श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्येक शनिवार आप आत्मसात कर सकते हैं यात्रा संस्मरण – गंगा-सागर यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – गंगा-सागर यात्रा – भाग-१ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

(यात्रा जीवन की एकरसता से निजात दिलाकर कुछ रोमांच के क्षण के अवसर उपलब्ध कराती हैं, इसलिए हर किसी को सुहाती हैं। हरेक यात्रा पर्यटन नहीं होती। यात्रा ज़रूरी होती है लेकिन पर्यटन आवश्यक नहीं होता, एक शौक होता है। पहाड़ों और सागरों के पर्यटन के अलावा तीर्थाटन भी पर्यटन का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। जिसमें आस्था का पुट भी शामिल होता है। हम पिताजी को चारों धाम यात्रा कराने के पूर्व एकाधिक बार तीर्थ यात्रा कर चुके थे। इस तरह प्रायः सभी प्रमुख तीर्थ स्थान देख चुके थे। अब उन तीर्थ स्थानों को पहुंचना था, जहाँ अब तक जाना न हुआ था।

तीर्थयात्रा में अक्सर आध्यात्मिक महत्व की खोज शामिल होती है। आम तौर पर, यह किसी व्यक्ति की मान्यताओं और आस्था के लिए किसी धार्मिक स्थान की यात्रा होती है, हालांकि कभी-कभी यह किसी व्यक्ति की अपनी मान्यताओं की कुतूहल पूर्वक एक प्रतीकात्मक यात्रा भी हो सकती है। हमारी यात्राएं इसी प्रकार की थीं।)

हमारे पिताजी दोस्तों के साथ 1965 में गंगा सागर तीर्थ भ्रमण करने गए थे। उस समय हमारा मस्ती भरा बचपन चल रहा था। हम जवानी की रौ में रहते थे। वे गंगा सागर घूम कर क्या आए। मन के सितार पर दिन के सारे पहर गंगा सागर राग छेड़े रहते। वे भी हमारे बाप थे, साथियों से डींग मारते बड़ी शान से कहा करते थे- सब तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार।

उनसे जब इसका अर्थ पूछते तो वे कहते थे कि गंगा सागर यात्रा बहुत कठिन है। जब उनको उत्तराखंड चार धाम ले गए तब बोले यार सुरेश ये तो गंगा सागर से भी कठिन है। टैक्सी यात्रा के दौरान वहाँ उनको बार-बार हिल सिकनेस होता था जिससे मितली आती थी। मितली आने से घबराहट भी होती थी। जब हम उनको साथ लेकर अमरनाथ यात्रा करने गए तब बोले यह तो चार धाम से भी कठिन है-

सब तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार,

गंगा सागर दस बार अमरनाथ एक बार।

एक बार बात-बात में पिताजी ने कहा था कि मेरी अस्थि प्रयाग के अलावा गंगा सागर भी ले जाना। यह उनकी भावनात्मक आस्था थी कि उनकी कुछ अस्थियाँ गंगा सागर में तिरोहित की जाएँ। पिताजी का स्वर्गारोहण हुए पाँच साल हो गए। हम अब तक गंगा सागर नहीं जा पाए थे। बात यह नहीं है कि उनकी आस्था का तार्किक आधार क्या है। असल बात है कि उन्हें औलाद से यह अपेक्षा थी। हमने उनके दाह संस्कार के दौरान उनका एक अस्थि अंश सुरक्षित कर रखा था। मन में एक टीस थी। क्या पिताजी की एक आस्थागत इच्छा पूरी नहीं की जा सकती है। गंगा सागर जाने के बारे में एक दो बार सोचा, परंतु कुछ बात बनी नहीं। हमारे मन में वहाँ जाने की बड़ी उत्कंठा थी।

सुबह की सैर पर बहुत से जान पहचान के लोग मिलते रहते हैं। मई 2023 की 07 तारीख़ को सुबह की सैर पर सरकारी प्रशासकीय सेवा से निवृत्त पवन राय मिले। उन्होंने कहा- कहीं घूमने चलते हैं आपके साथ। पहले बात चली कि काशी चलते हैं। लेकिन गर्मी में काशी घूमने का मज़ा नहीं है। वहाँ सावन के महीने में बहार का मौसम होता है, तब वहाँ चलना उपयुक्त होगा। अभी तुरंत चलना है तो कहीं समुद्र के किनारे पर लहरों से खेलने का कार्यक्रम बनाया जाय। हमारी बातचीत की सुई गोवा के समुद्री तटों से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गंगा के मुहाने पर आबाद गंगा सागर पर टिक गई। घर पहुँच कर परिवार से चर्चा में यह तय हो गया कि गंगा सागर भ्रमण को जाना चाहिए। पवन भाई को फ़ोन घुमा कर कहा कि भोपाल से कोलकाता का सेकंड एसी का किराया 5,000/- और हवाई उड़ान का 6,000/- है। बातचीत के बाद हवाई जहाज़ पर टिकट की जानकारी लेकर मात्र 6,000/- रुपये प्रति व्यक्ति खर्चे कर भोपाल से कोलकाता वाया हैदराबाद हवाई टिकट बुक कर दीं। इसी दर से वापसी टिकट भी वाया दिल्ली मिल गई।

अब बारी थी, गंगा सागर में तीन दिन रुकने के लिए उपयुक्त होटल। वेस्ट बंगाल टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन की होटल सर्च करके मैनेजर से संपर्क साधने पर पता चला कि कमरा एडवांस बुकिंग पर ही मिलता है। दो दिन का एडवांस किराया 6,000/- रुपये गूगल-पे से भुगतान करके एक वातानुकूलित कमरा बुक कर लिया। अगली बारी कोलकाता एयरपोर्ट से गंगासागर तक तीन दिन के पैकेज पर एक बढ़िया टैक्सी बुक करनी थी। पता चला कि 3,000/- प्रतिदिन के हिसाब से तीन दिन के 9,000/- लगेंगे। यह तय हुआ कि जिस रात नौ बजे कोलकाता एयरपोर्ट पहुँच रहे हैं। वहीं लाउंज पर क्रेडिट कार्ड पर प्राप्त मुफ़्त लाउंज और भोजन की सुविधा का लाभ उठाया जाये। टैक्सी बुकिंग वहीं पहुँच कर देखेंगे। 

एक सहज कौतूहल ने दिमाग़ में खलबली सी मचानी शुरू कर दी कि भैया पिताजी गंगा सागर के इतने दीवाने क्यों थे ? खोजबीन आरम्भ की तो पता चला कि गंगा सागर कोलकाता से 140-150 कि.मी. दूरी पर हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन डेल्टा पर स्थित एक द्वीप है। यह अपनी भौगोलिक विशेषता से ज़्यादा अपनी धार्मिक विशेषता के लिए जाना जाता है। अब यह सुंदरबन डेल्टा क्या बला है ?

सुंदरबन भारत तथा बांग्लादेश में स्थित विश्व का सबसे बड़ा नदी डेल्टा है। भारत और बांग्लादेश में फैले बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर स्थित कई द्वीपों के समूह से सुंदरबन बनता है। यह गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के समुद्र मिलन पर स्थित है। इसके अलावा यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सिर्फ़  सुंदरबन में पाई जाती हैं। यहाँ के वनों की एक ख़ास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों। यह डेल्टा धीरे-धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परन्तु अब यह तट से 24-32 किलोमीटर दूर स्थित लगभग 1,80,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ बड़ी तादाद में सुंदरी पेड़ मिलते हैं जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदरवन पड़ा परंतु वन को बंगाली में बन कहते हैं इसलिए सुंदरवन हो गया सुंदरबन।

मन सुंदरबन की सुंदरता को लालायित हो उठा। गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी से मिलकर दुनिया का सबसे बड़ा मुहाना अर्थात् डेल्टा बनाता है। जिसके आधे हिस्से पर बांग्लादेश और आधे पर भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के परगने बसे हैं। सघन वन और सतत बारिश की बूँदों से सिंचित दलदली ज़मीन का हरीतिमा से ढँका हिस्सा सुंदरबन है। यहाँ कोबरा बहुतायत से पाए हैं।

हवाई जहाज़ की टिकट और गंगा सागर में होटल कमरा बुक हो गया। और तो और सौम्या ने भोपाल-हैदराबाद-कोलकाता उड़ान हेतु वेब चेक-इन भी कर दिया। लेकिन एक दिन पहले एक नई दिक़्क़त सामने आ खड़ी हुई। यात्रा की पूर्व संध्या को डॉक्टर मीनू पांडेय “नयन” की पहल पर श्री अर्जुन प्रसाद तिवारी अस्मी जी पुस्तक “मुस्कान के प्रतिबंध” के लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन दायित्व लिया हुआ था। कार्यक्रम स्थल दुष्यंत सभागार जाते समय लू लग गई। एक मन हुआ कि भाई आयोजकों से अनुमति लेकर घर पहुँच आराम किया जाय। परंतु फिर विचार आया कि इस कार्यक्रम का क्या होगा ? लिहाज़ा ठंडे पानी की बोतल बुलवाईं और पानी पी-पीकर तीन घंटे का कार्यक्रम संचालित किया। उसके बाद स्थिति ख़राब होना शुरू हुई। कार से घर पहुँचे। तब तक अच्छा ख़ासा एक सौ एक डिग्री बुख़ार चढ़ चुका था। दही-चावल का भोजन किया एक गोली काम्बीफ़्लेम की ली और सोने का उपक्रम करने लगे। घर वाले हमारे कल कोलकाता यात्रा को लेकर बहुत परेशान होने लगे। उन्होंने दबाव बनाना आरंभ किया कि टिकट निरस्त करवा ली जाय। हमने किसी तरह उन्हें समझाया कि हमारी स्थिति ठीक नहीं होगी तो हम कदापि नहीं जाएँगे। लेकिन गंगा सागर के इशारे अरमानों को हवा दे रहे थे। यात्रा के दिन सुबह हमारे डॉक्टर अभिषेक मिश्रा और डॉक्टर संजय पाटकार से सलाह मशविरा किया। उन्होंने कहा कि दिन में दो बार काम्बीफ़्लेम टेबलेट लेते जाओ। सौम्या ने एक बड़ी बोतल में शक्कर-नमक का घोल भर कर रख दिया। चार केले बैग में रख लिए और यात्रा पर निकल लिए। आप यदि घुमंतू तबियत के हैं तो आपकी यात्रा में इस तरह की दिक़्क़तें पेश होतीही  हैं। आपका शरीर साथ दे रहा है तो डॉक्टर की सलाह से यात्रा में आते व्यवधान से मुक्त हुआ जा सकता है। इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए एक और चीज महत्वपूर्ण है, आपकी इच्छाशक्ति।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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