प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – भ्रष्टाचार निवारण…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 227 ☆
☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – भ्रष्टाचार निवारण… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
☆
मन ही करता है जीवन की हर गति का संचालन
सिर्फ संयमी मन कर सकता नीति नियम का पालन।
यदि मैला है मन तो झूठी सदाचार की बातें
नहीं लालची मन से संभव भ्रष्टाचार निवारण ॥ । ॥
*
उजले कपड़े बड़ी डिगरियाँ और ऊँचा सिंहासन
मन को सही आँक सकने के नहीं सही कोई साधन ।
सबकी समझ सोच होती है अलग-अलग इस जग में
अपवित्र मन ही होता है हर बुराई का कारण ॥ 2 ॥
*
सही दृष्टि से हो न सका सदशिक्षा का निर्धारण
इसीलिये उदण्ड हुआ मन तोड़ रहा अनुशासन ।
संयमहीन व्यक्ति का मन आतंकवाद की जड़ है
जिससे तंग सभी देशों का जग में आज प्रशासन ॥ ३ ॥
*
नीति-नियम कानून कड़े हों , हो निष्पक्ष प्रशासन
इतने भर से संभव कम भ्रष्टाचार-निवारण।
सोच-विचार-आचरण सबके पावन हितकारी
इसके लिये चाहिये मन को पावन शिक्षा-साधन ॥ 4 ॥
☆
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈