सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम नवगीत – बह रही तृष्णा हृदय में…।
रचना संसार # 51 – नवगीत – बह रही तृष्णा हृदय में… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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विषधरों को पालते हैं,
जो डुबोते प्रेम -बेड़े।
आह भरती है गरीबी,
और पैसा तन उधेड़े।।
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क्षीण होती आस है अब
गाज छाती पर गिरी है।
प्रेम निष्ठा खो गयी सब,
जेब स्वारथ से घिरी है।।
बह रही तृष्णा हृदय में,
काल के खाकर थपेड़े।
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जब चुनावी दौर आता,
सैकड़ो उत्पात होते।
चाल चलते हैं शकुनि- सी,
नित नये है घात होते।।
लालचों के शाल मिलते,
जीत के फिर साथ पेड़े।
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कागजी अखबार निशदिन,
खोलते दिन -रात पोलें।
फिर धजी का साँप बनता,
मूक बहरे बोल बोलें।।
किस तरह सागर तरेंगे,
जर्जरित नावों के बेड़े।
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चोंच लंबी मौत की है,
रोग करता देख हमला।
पैंतरा बदला सभी ने,
हो रहा है नित्य घपला।।
आपदा की ये सदी है,
सुत पिता को हैं खदेड़े।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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