डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 278 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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घाट घाट पर ढूंढ़ती, राधा अपने श्याम।
पीड़ा अब बढ़ने लगी, कहां छुपे घनश्याम।
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कलम आज ये कह रही, समझी तेरी पीर।
जान गए हम आपको, नहीं बहाओ नीर।।
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कलम ही तो लिख सकती, अपनी पीड़ा यार।
छंद गीत का भाव ही, करता रस संचार।।
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मधुरिम मधुरिम भाव है, मधुरिम मधुरिम सार ।
परख लिया तुमने मुझे, नमन यही व्यवहार।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈