श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना अनुभवों से जुड़ें। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 245 ☆ अनुभवों से जुड़ें

गुजरते वक्त की आहट

सुनायी दे रही है।

कही अनकही अनायास

दिखायी दे रही है।।

*

अंदाज बदल जाता है

जब कभी विवादो से।

बात सुधरती जाती है

तब केवल संवादों से।।

*

नासमझ बन जीते रहो

पर याद करना सदा।

भूलते हो भूल जाओ

पर पीर हरना सदा।।

*

फूल संग शूल मिलेंगे

बात यही सच्ची है।

कर्म करते चले जाओ

सीख यही अच्छी है।।

जीत के मूल मंत्र के साथ चलते रहने वाला कभी हारता नहीं है, बस सबको साथ लेकर चलना आना चाहिए। वक्त एक न एक दिन अपने अनुरूप सभी को ढाल लेता है जो जल्दी समझते हैं, वही सुखी रहते हैं। मानव मन सदा से यात्रा प्रेमी रहा है, उसे नए लोगों का साथ, नया परिवेश, नयी बोली, भाषा, पानी सभी कुछ चाहिए जिससे अपनी अनवरत यात्रा के दौरान वैचारिक पोटली को विस्तारित कर सके। चार धाम, पहाड़ों की सैर, नर्मदा परिक्रमा, नदियों में स्नान, तीर्थ स्थलों के दर्शन, पुरातत्व से जुड़े स्थान, ऐतिहासिक इमारतें आदि को समझना, जानना व इनसे सीखना।

जिज्ञासा से सीखने की प्रेरणा मिलती है। आइए मिलकर देश दुनिया को जाने समझे और उन्नत बनाने में सहयोग करें।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, chhayasaxena2508@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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