प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – रहे तिरंगा सदा लहरता सतरंगी आकाश में…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 226 ☆
☆ रहे तिरंगा सदा लहरता सतरंगी आकाश में… 🇮🇳 ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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रहे तिरंगा सदा लहरता भारत के आकाश में,
करता रहे देश नित उन्नति इसके धवल प्रकाश में ॥
लाखों वीरों ने बलि देकर के इसको फहराया है
आजादी का रथ रक्तिम पथ से ही होकर आया है ॥ 1 ॥
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यह भारत की माटी पावन इसमें चन्दन – गंध है,
अमर शहीदों का इसमें इतिहास और अनुबंध है ॥
उनके उष्ण रक्त से रंजित अगणित मर्म व्यथाएँ हैं,
सतत प्रेरणादायी भावुक कई गौरव – गाथाएँ हैं ॥ 2 ॥
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मनस्वियों औ ‘ तपस्वियों से इसका युग का नाता है,
राम – कृष्ण, गाँधी – सुभाष हम सबकी प्रेमल माता है ।
वीर प्रसू यह भूमि पुरातन बलिदानी, वरदानी है,
मानवीय संस्कृति की हर कण में कुछ लिखी कहानी है ॥ 3 ॥
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आओ इससे तिलक करें हम सुदृढ़ शक्ति फिर पाने को,
नई पीढ़ी को अमर शहीदों की फिर याद दिलाने को ॥
जन्मभूमि यह कर्मवती धार्मिक ऋषियों का धाम है,
इसको शत – शत नमन हमारा, बारम्बार प्रणाम है ॥ 4 ॥
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈