श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “कब तक दुनिया से डरोगे…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 218 ☆
☆ # “कब तक दुनिया से डरोगे…” # ☆
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मुंह छुपा के तुम
कब तक दुनिया से डरोगे
जीने के लिए
और कितने समझौते करोगे
माना के राह में दुश्वारियां बहुत है
माना के चाह में बेचारियां बहुत है
माना के निगाह में चिंगारियां बहुत है
इन आंसुओं से कब तक
समंदर को भरोगे
मुंह छुपा के कब तक
दुनिया से डरोगे
आसमान पर हमारी
कोई जगह नहीं है
झुक जाने की हमारी
कोई वजह नहीं है
जीत भी कमजर्फ
हमारी कोई फतह नहीं है
इस पक्षपात से लड़ने
तुम कब संघर्ष करोगे
मुंह छुपा के कब तक
दुनिया से डरोगे
हमारी दुनिया अलग
उनकी दुनिया अलग है
हमारे पास बंजर धरा
उनके पास फलक है
हम बेबस है कदम-कदम पर
उनमें अय्याशी की झलक है
इस शोषण से वंचितों को
कब मुक्त करोगे
मुंह छुपा के तुम कब तक
दुनिया से डरोगे
अब छोड़िए डरना
खुलकर आगे बढ़िए
अपने हक और अधिकारों
के लिए लड़िए
धम्म के पथ पर चल कर
एक नया इतिहास गढ़िए
इन दुष्ट ताकतों में तुम
कब अपना खौफ भरोगे
मुंह छुपा के कब तक
दुनिया से डरोगे
जीने के लिए और
कितने समझौते करोगे/
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© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈