श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 160 ☆
☆ मुक्तक – ।। मत हारो मन को कि हार के बाद मिलती जीत है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
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=1=
सदियों से ही चल, रही यही रीत है।
हार के बाद ही , मिलती जीत है।।
अगर नहीं छोड़ी प्रीत, जोशो जनून से।
सफलता बन जाती, हमारी मीत है।।
=2=
परिश्रम और व्यवहार, यही दो मंत्र हैं।
बुद्धि और विवेक, जीत के दो तंत्र हैं।।
सहयोग और सरोकार को बनाते मित्र।
साहस और उत्साह, जीत के दो यंत्र हैं।।
=3=
बनना है सफल तो कर्मशीलता साथ रखो।
सबसे मिलाकर हाथों में, तुम हाथ रखो।।
मंजिल खुद चलकर, पास तुम्हें बुलाएगी।
बस निरंतर अभ्यास, का सूत्र याद रखो।।
=4=
व्यवहार लोकप्रियता सिक्के के दो पक्ष हैं।
सफल होते वह सब जो बोलने में दक्ष हैं।।
जो अनुठा कार्य करते वह स्थान बना लेते।
जीतका हार पहनते जो रखते सामने लक्ष्य हैं।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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