श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी श्री शिव मोहन यादव जी द्वारा रचित पुस्तक “श्रीकृष्ण-अर्जुन युद्ध (खंड-काव्य)” पर पुस्तक चर्चा।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 211 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – श्रीकृष्ण-अर्जुन युद्ध (खंड-काव्य) – रचनाकार – श्री शिव मोहन यादव ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
पुस्तक: श्रीकृष्ण-अर्जुन युद्ध (खंड-काव्य)
रचनाकार: शिव मोहन यादव
प्रकाशक: अद्विक पब्लिकेशन, दिल्ली
प्रथम संस्करण: 2024
पृष्ठ संख्या: 102
मूल्य: ₹160
समीक्षक: ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
☆ समीक्षा – लुप्तप्राय परंपरा को नया जीवन देता खंड-काव्य ☆
शिव मोहन यादव द्वारा रचित श्रीकृष्ण-अर्जुन युद्ध एक अनूठा खंड-काव्य है, जो भारतीय साहित्य में प्रबंध-काव्य की लुप्तप्राय परंपरा को नया जीवन देता है। यह रचना न केवल एक पौराणिक कथा को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत करती है, बल्कि आधुनिक पाठकों को भारतीय दर्शन, संस्कृति और आध्यात्मिकता के गहन आयामों से जोड़ती है।
कथावस्तु और थीम
श्रीकृष्ण-अर्जुन युद्ध का शीर्षक पहली नजर में आश्चर्यजनक लगता है, क्योंकि श्रीकृष्ण और अर्जुन, जो महाभारत में सखा और गुरु-शिष्य के रूप में प्रसिद्ध हैं, को युद्धरत देखना असंभव-सा प्रतीत होता है। रचनाकार ने अपनी प्रस्तावना में इस संदेह को संबोधित करते हुए बताते हैं कि यह कथा एक कम प्रचलित पौराणिक प्रसंग पर आधारित है। यह कथा श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए एक प्रतीकात्मक युद्ध की गूढ़ व्याख्या प्रस्तुत करती है, जो आध्यात्मिक, नैतिक और दार्शनिक प्रश्नों को उजागर करती है।
काव्य पुस्तक ग्यारह खंडों में विभाजित है। मंगलाचरण, अर्घ्य खंड, चिंतन खंड, ब्रह्मलोक भ्रमण खंड, बैकुंठ भ्रमण खंड, कैलाश भ्रमण खंड, इंद्र-लोक भ्रमण खंड, व्यथा खंड, नारद-चित्रसेन संवाद, अभयदान खंड, नारद-श्रीकृष्ण संवाद और युद्ध खंड। प्रत्येक खंड कथानक को क्रमबद्ध रूप से आगे बढ़ाता है। नारद और चित्रसेन जैसे प्रसिद्ध पात्र कथा को दार्शनिक गहराई प्रदान करते हैं। कथा का आधार गुरु-पूर्णिमा और आध्यात्मिक जागृति से जुड़ा है, जैसा कि लेखक ने गुरु-पूर्णिमा 2024 को रचना के पूर्ण होने का उल्लेख किया है। यह कृति केवल युद्ध का वर्णन नहीं करती, बल्कि गुरु-शिष्य संबंध, आत्म-चिंतन और ईश्वरीय कृपा जैसे विषयों को भी समेटती है।
लेखन शैली और काव्य सौंदर्य:
शिव मोहन यादव की लेखन शैली सरल, लयबद्ध और प्रभावशाली है। खंड-काव्य के रूप में यह रचना छंदबद्धता और भावप्रवणता का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करती है। मंगलाचरण और नारद-चित्रसेन संवाद जैसे अंशों में दोहा और चौपाई का प्रयोग पाठक को पारंपरिक हिंदी काव्य की स्मृति दिलाता है। उदाहरण के लिए, मंगलाचरण में लिखा गया:
“प्रथम पूजते आपको, श्री गणपति-विघ्नेश।
विधिवत काज सँवारिए, हरिए सभी कलेश॥”
यह पंक्ति काव्य की शास्त्रीयता और आध्यात्मिकता को दर्शाती है।
लेखक ने कथा की रोचकता को बनाए रखने के लिए संवादों का सहारा लिया है, जो पात्रों के मनोभावों को उजागर करते हैं। नारद-चित्रसेन संवाद में गुरु-पूर्णिमा की महत्ता और आध्यात्मिक अनुष्ठानों का वर्णन कथानक को आगे बढ़ाता है और पाठक को सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ता है। काव्य की भाषा सरल होते हुए भी भावनात्मक गहराई लिए हुए है, जो सामान्य और विद्वान पाठकों दोनों को आकर्षित करती है।
पुस्तक की संरचना और प्रभाव:
ग्यारह खंडों में विभाजित यह संरचना कथानक की गहराई, सुगमता और भावनात्मक प्रभाव को बढ़ाती है। प्रत्येक खंड एक विशिष्ट उद्देश्य को पूरा करता है, जो पाठक को कथा की आध्यात्मिक, दार्शनिक और भावनात्मक परतों से परिचित कराता है।
क्रमिक कथानक जो मंगलाचरण से शुरू होकर, एक श्रद्धापूर्ण स्वर स्थापित करता है, संरचना उत्सुकता जगाती है। अर्घ्य खंड और चिंतन खंड दार्शनिक और भावनात्मक आधार तैयार करते हैं, जबकि ब्रह्मलोक, बैकुंठ, कैलाश और इंद्र-लोक भ्रमण खंड कथा को ब्रह्मांडीय आयाम देते हैं। ये खंड श्रीकृष्ण-अर्जुन के युद्ध को व्यक्तिगत संघर्ष से अधिक, सार्वभौमिक महत्व प्रदान करते हैं।
विषयगत विभाजन: प्रत्येक खंड एक विशिष्ट थीम पर केंद्रित है। उदाहरण के लिए, व्यथा खंड संभवतः पात्रों की भावनात्मक पीड़ा को उजागर करता है, जबकि नारद-चित्रसेन संवाद दार्शनिक चिंतन का अवसर देता है। यह विभाजन पाठक को कथा के भावनात्मक और बौद्धिक भार को सहजता से ग्रहण करने में मदद करता है।
लयबद्ध गति: खंडों की संरचना भारतीय महाकाव्य परंपरा की मौखिक शैली को प्रतिबिंबित करती है। प्रत्येक खंड एक पड़ाव की तरह है, जो पाठक को रुककर चिंतन करने का अवसर देता है। यह गति काव्य की लयबद्धता के साथ सामंजस्य रखती है और पाठ को संतुलित बनाती है।
चरमोत्कर्ष और समापन: अंतिम खंड—अभयदान, नारद-श्रीकृष्ण संवाद और युद्ध खंड—कथा को चरमोत्कर्ष तक ले जाते हैं। युद्ध को अंतिम खंड में रखकर रचनाकार पाठक को भावनात्मक और बौद्धिक रूप से तैयार करते हैं। समापन में चित्रसेन का “कोटि प्रणाम” और सभी का अपने धाम लौटना एक सामंजस्यपूर्ण समाधान दर्शाता है।
सांस्कृतिक प्रतिबिंब: संरचना गुरु-पूर्णिमा जैसे सांस्कृतिक और धार्मिक अवसरों को प्रतिबिंबित करती है। ग्यारह खंड एक आध्यात्मिक यात्रा के समान हैं, जिसमें मंगलाचरण, चिंतन, दैवीय भ्रमण और समाधान शामिल हैं। यह संरचना रचनाकार के उद्देश्य—बौद्धिक और आध्यात्मिक प्रेरणा—को साकार करती है।
साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व:
‘श्रीकृष्ण-अर्जुन युद्ध’ का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह प्रबंध-काव्य की परंपरा को पुनर्जन्म देता है। रचनाकार की यह टिप्पणी कि कई दशकों से इस विधा में उल्लेखनीय रचनाएँ सामने नहीं आई हैं, इस कृति के महत्व को रेखांकित करती है। यह रचना हिंदी साहित्य में एक नया मानदंड स्थापित करती है, जो आधुनिक और पारंपरिक तत्वों का संतुलन बनाए रखती है। साथ ही, यह पाठकों को भारतीय संस्कृति और दर्शन से जोड़कर आध्यात्मिक चेतना को प्रोत्साहित करती है।
पाठकों पर प्रभाव:
यह कृति सामान्य पाठकों से लेकर साहित्य प्रेमियों और आध्यात्मिक खोज करने वालों तक, सभी के लिए आकर्षक का केंद्रबिंदु है। इसकी सरल भाषा और लयबद्ध शैली इसे सुगम बनाती है, जबकि गहन थीम और दार्शनिक संवाद विद्वानों को भी प्रभावित करते हैं। रचनाकार की ईमानदार प्रस्तावना, जिसमें वे अपनी लेखन यात्रा और प्रेरणा साझा करते हैं, पाठक के साथ एक व्यक्तिगत संबंध स्थापित करती है।
निष्कर्ष:
‘श्रीकृष्ण-अर्जुन युद्ध’ एक ऐसी काव्य रचना है, जो अपनी अनूठी कथावस्तु, लयबद्ध काव्य शैली और संरचनात्मक सुंदरता के कारण हिंदी साहित्य में विशेष स्थान रखती है। यह न केवल एक पौराणिक कथा को जीवंत करती है, बल्कि पाठकों को आध्यात्मिक और बौद्धिक यात्रा पर ले जाती है। शिव मोहन यादव की यह कृति उन पाठकों के लिए अवश्य पढ़ने योग्य है, जो साहित्य, संस्कृति और दर्शन के संगम का आनंद लेना चाहते हैं। लेखक का यह आह्वान कि पाठक पत्र लिखकर अपनी प्रतिक्रिया साझा करें, इस रचना की आत्मीयता को और बढ़ाता है।
© श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
संपर्क – 14/198, नई आबादी, गार्डन के सामने, सामुदायिक भवन के पीछे, रतनगढ़, जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) पिनकोड-458226
ईमेल – [email protected] मोबाइल – 9424079675 /8827985775
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈