स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – फँसत करे जे फाँस।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 235 – फँसत करे जे फाँस… ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से) 

तनक मनक हेरत, हँसत,

लसत लहरिया सात

फँसत करेंजे फॉस ।

 

अमरौटी में बिना दुलो आ.

और जुरी है आदी

अमियन के ललचैया भैया

खात जात हैं गारी ।

सबके मन कैरी कचनारी

जुरै गुलाब गुरांस ।

 

ऐन भरे हैं ताल तलैया

कुइया लौ उफनानी

जिनकी निघा उतार पानी

बे सुइ अब स्य पानी ।

 

एक डोर में बैंदी दूसरी

अध बीचे में गांस |

गाँव अरे की गैल व सी

सबड़ गैल अँदयारी

इत्तई में सबने का देखी

फूट परी उजयारी ।

 

सब मरे गैल न सूझे

कछू गओ है आँस ।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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