आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 234 ☆
☆ नौ दोहा दीप ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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दिन की देहरी पर खड़ी, संध्या ले शशि-दीप
गगन सिंधु मोती अगिन, तारे रजनी सीप
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दीप जला त्राटक करें, पाएँ आत्म-प्रकाश
तारक अनगिन धरा को, उतर करें आकाश
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दीप जलाकर कीजिए, हाथ जोड़ नत माथ
दसों दिशा की आरती, भाग्य देव हों साथ
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जीवन ज्योतिर्मय करे, दीपक बाती ज्योत
आशंका तूफ़ान पर, जीते आशा पोत
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नौ-नौ की नव माल से, कोरोना को मार
नौ का दीपक करेगा, तम-सागर को पार
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नौ नौ नौ की ज्योति से, अन्धकार को भेद
हँसे ठठा भारत करे, चीनी झालर खेद
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आत्म दीप सब बालिये, नहीं रहें मतभेद
अतिरेकी हों अल्पमत, बहुमत में श्रम – स्वेद
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तन माटी माटी दिया, लौ – आत्मा दो ज्योत
द्वैत मिटा अद्वैत वर, रवि सम हो खद्योत
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जन-मन वरण प्रकाश का, करे तिमिर को जीत
वंदन भारत-भारती कहे, बढ़े तब प्रीत
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
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