श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे – नीति संबंधी । आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 257 ☆
☆ संतोष के दोहे – नीति संबंधी ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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साथ कभी जाता नहीं, कोई भी सामान
याद रहे बस कर्म से, था कैसा इंसान
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मैं मेरा के फेर में, उम्र गई सब बीत
काम न आया जरा कुछ, समझो मेरे मीत
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पैसों का चक्कर बुरा, जिसका कभी न अंत
रख यह भौतिक सम्पदा, ले न गए धनवंत
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खुलते कभी न भोग से, यह मोक्ष के द्वार
नेकी से सुख सम्पदा, जिससे सुख संसार
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सुख शांति उनको मिले, जो करते उपकार
बिन नेकी यह जिंदगी, होती है बेकार
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कलियुग में जो मानते, मात-पिता को भार
कैसी बिगड़ी सोच यह, सुन मेरे करतार
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लाज – शर्म सब छोड़ कर, जिनके बिगड़े बोल
समय सीख देता उन्हें, देता आँखें खोल
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क्रोध कभी मत कीजिए, लाता यह प्रतिशोध
सूझ -बूझ से हम करें, संयम संग विरोध
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होते हैं घातक बहुत, क्रोध जनित परिणाम
क्रोध कभी मत पालिए, अंत रचे संग्राम
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रिश्तों को भी फूँकती, तेज क्रोध की आग
जीवन में खलते सदा, इन जख्मों के दाग
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तुलसी बाबा कह गए, क्रोध पाप का मूल
कहता है संतोष यह, क्रोध चुभे ज्यों शूल
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
वाह बेहतरीन अभिव्यक्ति