श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय ग़ज़ल  “एक हक़ीक़त ” ।)       

✍ जय प्रकाश साहित्य # 103 ☆ ग़ज़ल – एक हक़ीक़त ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

ख़ामोशी  जंगल  पर  तारी  है,

एक हक़ीक़त सब पर भारी है।

*

ख़ून हुआ है जिसके सपनों का,

उसकी  आँखों  में  लाचारी  है।

*

उनकी कविता पर कुछ क्या कहना,

शब्दों   की    बस   पच्चीकारी   है ।

*

भूख खड़ी है जिनके द्वारे पर,

उनकी  रोटी  भी  सरकारी है।

*

मानवता की क्या उसको चिंता,

वो  तो  लाशों  का  व्यापारी है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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